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________________ ( २८ ) ५ प्रकार की निद्रा का स्वरूप | " १ निद्रा - किसी सोते हुवे को कोई ' जगावे वा न जगावें किन्तु वो सुख पूर्वक जगजावे ' अर्थात् इच्छानुसार ही शांति के लिये निद्रा ले और इच्छानुसार हो जागे उसकी नीद को निद्रा कहते हैं । 1 . २ निद्रानिद्रा - कोई अत्यंत कठिनता से जगाया जा सके अर्थात् इच्छापूवर्क जाग न सके किन्तु उसको जागने में भी दुःख होवे उसकी निद्रा को निद्रानिद्रा कहते हैं । ' " • - ३ प्रचला - जो बैठे हुवे कुछ काम कर रहे हो वहां भी निद्रा आने लगे जिससे काम में विघ्न होना भी सम्भव हो उस निद्रा को प्रचला कहते है - जैसे कोई मनुष्य दीपक के समीप बैठकर वहीं लिख रहा था उसको निद्रा आई और उसकी पगड़ी जलगई ।.. "" .४, प्रचला चला - किसी को घोड़े की तरह चलते हुवे भी निद्रा आती हो जैसे घोड़ा चलते २ मुंह में दाना खाता, हुवा चलता है किन्तु दाने में जब कंकर आजाता है वा ठोकर लगजाती है तब जाग जाता है वैसे ही चलते ? कोई निद्रा लेता है और उसको धक्का या ठोकर लगता है या लोहू निकलता है तब जागता है उसकी निद्रा को प्रचला प्रचला कहते हैं । · रोगी, अशक्त और बालक आदि की निद्रा से उपरोक्त
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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