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________________ (२६) नने को और देखने को किन्तु कुछ अंश में (मकट) देखने को दर्शन कहते हैं । चार प्रकार के आवरण और पांच प्रकार की निद्रा ये कारण इंद्रियों को देखने और जानने में, विघ्न करते हैं और रोकते हैं इसलिये इनको दर्शनावरणीय कर्म के भेद कहते हैं !:...... .................... .... .: जिस प्रकार यदि कोई राजा प्रजा का सुख दुःख जानना चाहें किन्तु द्वारपाल विघ्न, किया करे तो राजा और प्रजा का मिलाप न होने से राजा प्रजा का हाल नहीं जानसका है इस ही प्रकार जीव किसी वस्तु का स्वरूप जानता वा देखना चाहें तो दर्शनावरणीय, कर्मों के विघ्नादि से जीव भी नहीं जान सक्का है और न देख सक्ता है। ..चक्खू दिट्टि अचक्खू, सेसिदिय श्रोहि केवलेहिं च दंसण मिहसामन्नं, तस्सावरणं. हवइ चउहा ॥ १० ..... ४ प्रकार के दर्शनों का स्वरूप] .... . १ चक्षुदर्शन-पदार्थ को विना स्पर्श आंखों से देखने को कहते है। २ अंचक्षु दर्शन-पदार्थ को आंखों के सिवाय चार इंद्रियों तथा मनके द्वारा सामान्य प्रकार के ज्ञान को कहते है।
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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