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________________ १०६ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाला. आहारविहारादिमा नियम सहित प्रवर्त्तवं. सत्शास्त्रना अभ्यासनो नियमित वखत राखबो. सायंकाळे उपयोगपूर्वक संध्यावश्यक कर. निद्रा नियमितपणे लेवी. सुता पेहेला अढार पापस्थानक, द्वादशवृतदोष, अने सर्व जीव प्रत्ये क्षमावी, पंच परमेष्टि मंत्रनुं स्मरण करी, समाधि पूर्वक शयन करवू. ____ आ सामान्य नियमो वहु मंगळकारी छे. जे अहीं संक्षेपमां कह्या छे. विशेष विचारवाथी अने तेम प्रवर्त्तवाथी ते विशेष मंगलदायक अने आनंदकारक थशे. शिक्षापाठ ५६. क्षमापना. - हे भगवान् ! हु बहु भूली गयो, में तमारां अमूल्य वचनने लक्षमां लीयां नहीं. में तमारां कहेलां अनुपम तत्वनो विचार कर्यों नहीं. तमारां प्रणीत करेला उत्तम शीलने सेव्यु नहीं. तमारां कहेला दया, शांति, क्षमा अने पवित्रता में ओळख्यां नहीं. हे भगवान ! हुँ भूल्यो, आयड्यो-रझल्यो अने अनंत संसारनी विटम्बनामां पड्यो
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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