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________________ ( ४१४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. रुक्मीने, शिशुपालने, करीने, सुयोधनने, दमदंतने अने बीजा महा तेजवंत राजपुत्रोने दूत मोकलीने तेमाव्या वे; तेथी तेन सर्वे तत्काल श्रावी पहोच्या d. प प पुत्रो सहित स्वयंवर मंरुपमां ऊट पधारी तेने सुशोभित करो. " दूतनां आवां वचन सांजली पांकुराजा, पोताना पांच पुत्रो सहित श्र संख्य सैन्यश्री परवस्यो तो वहु वाजत्रोना नादपूर्वक कांपीलपुरप्रत्ये गयो. पांकुराजाने प्रावेला सांगली पोतानां चित्तमां बहु दर्ष पामेला अने स्थिर मनवाला डुपद भूपतिये तेमने महोत्सवथी नगरप्रवेश कराव्यो. त्यार पठी डुपद राजाए तुरत अगुरु चंदननां काष्ट, रत्न, माणिक्य, सुवर्ण अने वीजी अनेक मनोहर धातुथी तैयार करावेला सिंहासनोना समूहवालो ने पोतानी दिव्य कांतिथी वैमानोना श्रनिमानने जीतनारो स्वयंवर मंगव रचाव्यो. तेमां जूदा जूदा रोमां सुशोभित एवा सिंहासनो नपर शोजतां सुंदर तोरणो जाणे त्रण जगत्ने जीतवा माटे कामदेवे सऊ करेलां धनुष्यो होयनी एवा शोभतां हतां. त्यां सुवर्णना सिंहासनो नपर बेठेला राजपुत्रो जाये "वैमानमां वेळेला देवी व्यमान कांतिवाला इंझेज होयनी ? एम शोनवा लाग्या. सर्वे राजकुमारोमां पोताना उत्तम एवा पांच पुत्रोसहित पांफुराजा, जाणे पांच वालोए युक्त एवो साक्षात् कामदेवज होयनी शुं ? एम बहु शोजवा, लाग्यो. या अवसरे स्नान करेली, कीर समुना जल समान वस्त्र धारण करनारी, उत्तम ग्रानूपणोश्री सुशोभित अंगवाली, पूर्ण चंद समान मुखवाली, हस्तिना लरखी गतिवाली थाने रूपसर्पतिये करीने रतिने पण जीतनारी - पदी हाथमां वरमाला लइ अनेक सखीयोनी साथे त्यां स्वयंवर मंरुममां थावीने पोताना पितानी ग्रागल राधावेधना स्तंभनी पासे वेठी. पठी डुपद भूपतिनी ग्राझावी प्रतिहारीये वेगवमे एक धनुष्य लावी ने राधावेधना स्तंभनी पाने नजा रहोने सर्वे राजान प्रत्ये था प्रमाणे कां. “हे भूपतियो ! सांजलो. या स्तंभनी उपर जे वार आरावालुं चक्र फरे वे, तेना उपर कावी बाजुए हेली राधा [पुतली ]ने जे कोइ वलवंत धनुर्धारि राजपुत्र था नीचे देसी घीनी कमाइमां जोडने पोताना वासवमे करीने विंधशे ते वीरपुरुष सर्व राजकन्यामां मुकुटमणिरूप, महासती श्रने राधावेवना पण वाली श्रा नाम है.
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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