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________________ पांमव चरित्र. (४१५) पदीने परणशे." प्रतिहारीनां आवां वचन सांजली राधावेध करवाने तैयार श्रयेला राजपुत्रोमांहेना केटलाक तो धनुष्यने धारण करवाज समर्थ थया नहि केटलाक धनुष्य नपर बाण चमाववा समर्थ श्रया नहि अने केटलाक तो पोतार्नु बल मनमां समजीने सिंहासन नपरथी नव्या पण नहि. पठी सर्व धनुर्धारिमां मुख्य एवा अर्जुने, सिंहनी पेठे नुज पराक्रमवाला नीमसेनसहित पोताना सिंहासनश्री नीचे उतरी हर्षवमे सर्व क्षत्रीयोने नमस्कार कस्यो. त्यार बाद तेणे लढाथी सर्वे नूपालोना जोता बतां पोताना वजसमान हाथ वमे ते राजानना मानसहित धनुष्य गृहण करयु. आ वखत नीमसेन, नंचा हाथ करीने सर्व दिशानना अधिपतियोने कहेवा लाग्यो के, “हे शेषनाग! तमे समस्त पृथ्वीनो नार धारण करवामां अति निश्चल थ रहो. सर्व विश्वने पालन करवामां तत्पर एवा इंद, अमि, यम, वायु अने बह्मा विगेरे हे लोकपालो ! तमे पण सर्वे स्थिर अश् जुन के, आ म्हारो न्हानो बंधु, उत्कृष्ट एवा धनुर्धारिनना पादन्यासे करीने सर्व नूपतियोना गर्वसहित आ दृढ धनुष्यने निश्चे नमावशे.” परी नीचे ले दृष्टि जेनी एवा अर्जुने, बलवमे धनुष्य चमावीने सर्व राजानना जोता उताअतिलाघवपणाथीपोतानुंबाण नंचुं खेंच्यु. बन्ने कानने बहेरा करी देनारा, तत्काल कायर पुरुषोने पृथ्वी नपर सुवारी देनारा अने बीकण जनोने त्रास पमामनारा धनुष्यना अति कगेर शब्दवमे करीने नना घीनी कमामां दृष्टि राखनारा अर्जुने, वेगयी फरतां चक्र नपर देखाती राधा (पुतली)ने जोश्ने तुरत पोताना गेमेला बागवमे सन्नासमक ते पुतलीने वींधी नाखी. आ वखते आकाशमां जयजय शब्दपूर्वक देव उंछन्नी वागवा लाग्या अने देवतानए करेली चारे तरफ पुष्पवृष्टि श्रइ. जो के आ वखते नत्पन्न श्रयेला अनुरागवाली क्षेपदीये क्यारे पण निःपुण्य पुरुषोए नहि मेलवी शकाय एवी पोताना हाथमा रहेली वरमाला अति वेगथी अर्जुनना कंठने विषे आरोपण करी; परंतु ते वरमाला तो तुरत पांच रूपे श्रश्ने जेम मनशक्ति पांच इंनिने विषे आरोपण पाय तेम पांचे पांवोना कंठने विषे आरोपीत था. जेम पांच विषयो आदरथी नत्तम बुझिनो आश्रय करे तेम पांमु राजाना पांच पुत्रोए सर्वे राजा जोता उतां प्रिय एवी क्षेपदीनो आश्रय कस्यो, आवा आश्चर्यथी गांगेय पोतानां चित्तमां बहु लजा पाम्या,
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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