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________________ (१२७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. पेयी पुष्पवके वधावेला, किंनरोए गायन करेला प्रत्तुना गुणथी आनंदित श्रयेला लोकोवमे जोवाएला, वली “अहो! आ असंग एवा प्रन्नु आवी समृदिने त्यजी दे " एम चारण लोकोए वारंवार स्तुति करेला लगवान् सहस्त्रान व. नने विषे अाव्या. त्यां कृतिका नक्षत्रमा सर्व सिशेने नमस्कार करीने तेमणे व्रत ग्रहण करयुं. ते वखते प्रत्लुने चोयूं मनःपर्यवज्ञान नत्पन्न प्रयु. पठी प्रनु पृथ्वी नपर विहार करवा लाग्या. आ प्रमाणे तेमणे बद्मस्थावस्थाए सोल मास विहार कस्यो. फरी सहस्त्राम्र वनमां आव्या. त्यां आत्माने नावतां एवा प्रन्नुने तिलक वृक्षनी नीचे तत्काल केवल ज्ञान प्राप्त एटले चोसठ शेए मलीने नक्तिपूर्वक समवसरण रब्यु. अनुए सिंहासन पर विराजमान थ अमृतवाणीवमे एवी धर्मदेशना आपी के, जेथी मनुष्योर्नु मिथ्यात्वरूप विष गली गयुं. ते आप्रमाणे-बहु नोगमांआसक्त बनेला जे मूढ पुरुषो निरंतर पापकर्म करे , ते परतंत्र श्रयेला एवा प्राणीयो नरकरूप खाश्मां पमेने अने अरिहंत प्रन्नुए देखामेला मार्गने जागनारा, धर्मने विषे नद्यम करनारा, त्रण तत्त्वने विषे नुत्साह धरनारा, अक्षयुक्त मनवाला जे प्राणीयो निरंतर गुरुनतिने विषे आसक्त अश् वे प्रकारना तपने विषे तत्पर रहे ले तेन थोमा कालमां मुक्ति नगरी प्रत्ये जनारा थाय ठे अरिहंत प्रन्नुनो आवो धर्मोपदेश सांजली सर्व सन्ना नुत्तम संवेगवाली थर गश्; जेथी केटलाके चारित्र अने केटलाके श्रावक धर्म अंगीकार कस्यो. शंख राजा पोतानुं सर्व राज्य तृणनी पेठे त्यजी दर प्रनुनी पाले तेमनो प्रथम गणधर अयो. प्रन्नुने शंखादिक साठ हजार शिष्यो (साधुन), साठ हजार अने आठसो साध्वीयो, एक लाख अने नव्यासी हजार श्रावको तथा त्रण लाख अने एकाशी हजार श्राविकान हती. श्री कुंथुनाथ मनु तेवीश हजार अने सामासातसो वर्ष पृथ्वी नपर विहार करीने पठी सम्मेतशिखर पर्वत उपर एक मासना अनशनथी कृतिका नक्षत्रमा चंनो योग उते मुक्तिरमणीने वस्या. पठी देवतानए त्यां यावी हर्ष सहित प्रनुनो निर्वाण महोत्सव कस्यो. घणा साधुन प्रनुनी साये सिहिपुरी प्रत्ये गया. पी कोटी शीलाने विपे श्री कुंथुनाथ जिनेश्वरनी पाठल कोटी साधुन सहित अहवीश. युगपुरुषो मुक्ति पाम्या. ॥ इति कुंथुनाथ चरित्रम् ॥
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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