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________________ श्री कुंथुनाथ चरित्र. ( १७ ) जाने सीधे निरंतर रात्रिने विषे ग्लानी पामता हता. वली लक्ष्मी पण श्रीवच - ना चिन्दथी जेना हृदयनो आश्रय करीने रही बे एवा कृष्ण पण ते लक्ष्मीना वियोगीज समुमां परया बे, एम हुं जाणुं हुं. ढींचराथी पण नीचे सुधी लांबा एवा प्रजुना बन्ने हाथ दुर्गतिरूप नगरना हारना कमारुनी जाणे जोगलो होय नहि शुं ? एम हुं जाएं बुं. प्रभुना हायनी प्रांगली यो पण अशोकवृक्षना पल्लवनो तिरस्कार करती हती. श्रा प्रमाणे जिनेश्वर प्रजुना समग्र देहनी लक्ष्मी पूर्ण रीते शोनि रही हती. प्रजुए त्रेवीश हजार प्रने सामासातसो वर्ष सुधी कुमार वस्था घणा सुखथी जोगवी. त्यार पी वैराग्यवंत प्रयेला श्री सूरनूपतिये महोत्सव पूर्वक प्रजुने राज्यासने बेसारखा. पी इंशे स्तुति करेला, करुणाना समुइ अने तपायमान सुवर्ण समान | कांतिवाला प्रजुए इंनी पेठे राज्य करवा मांग. तेवीश हजार अने सामा सातसो वर्ष प्रभु मंगलीकपदे राज्य करयुं. एटलामां मनुना शस्त्रगृहने विषे चक्ररत्न उत्पन्न युं. पी प्रभु म्होटा उत्सवश्री चक्ररत्ननी पूजा करी शांतिनाथनी पेठे सर्व भरतक्षेत्रने साधी बत्रीश हजार राजान सहित दर्षथी गजपुर नगर प्रत्ये व्या. त्यां तेमनो बार वर्षपर्यंत चक्रवर्तीपणानो अभिषेक प्रयो. पी प्रजुए वीश हजार अने सामासातसो वर्ष सुधी चक्रवर्ती राज्य करयुं. त्यार पी प्रभु प्रदर्शनुवनमां रही संपत्चिना अनित्यपणानो विचार करता हता ते वखते लोकांतिक देवतान्ये श्रावीने प्रञ्जुनी विनंती करी के, “दे जगवन् ! निश्वे आपे जव अने मोक ए बन्नेनी गति जाणी बे, माटे हे प्रभु! नव्य जीवोना बोधने माटे चारित्र अंगीकार करो अने चार घातिकर्मनो नाश करी केवलज्ञानने मेलवो. वली हे नाथ! धर्म देशनावमे भव्य जीवोने तारो." इत्यादि नक्तियुक्त वचनश्री जिनेश्वरनी स्तुति करीने लोकांतिक देवतान पोताने धन्य मानता बता अंतर्ध्यान थया. - पी जगवाने दाना फलने नहि बता बतां पण 'अरिहंतोनी आवीज रीती " एम धारी पृथ्वीने विषे वर्षादनी पेठे वार्षिक दान प्राप्युं. पबी विजय नामनी पालखी मां बेसीने सर्वे इंशे अने बत्रिश हजार भूपतिनथी विंटलायेला, राजा ने देवतान ए स्तुति करेला, मागध जनोए उत्कृष्ट नतिथी वारंवार स्तवन करेला, कुलवधुनए अत्यंत मंगल करेला, जृंभक देवतानए इ ८८
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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