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________________ भगवती के अंग [ ३०२ यह है कि मां उपकारी है, उपकारी उपकार करते अभी तक सैनिक शक्ति का दुरुपयोग नहीं समय विपत्ति में फँसजाय तो उपकृत की अपेक्षा करता रहा है उस की सेना में भरती होने पर उपकारी की रक्षा करना न्याय है, इसलिये इसे सनिक युद्ध के पाप से निर्षित रह सकता है। न्यायरक्षक घात कह सकते हैं । ऐसी हालत में प्रश्न- असभ्य जातियों को सुधारने यह पाप न कहलाया। के लिये अगर उनसे युद्ध करना हो तो उसके प्रश्न-जब तक भगवती अहिंसा क साम्राज्य वि सेना में भरती होना पुण्य है या पाप! मान्य जगत् में स्थापित नहीं हुआ है तब तक उत्तर-सुधार के नाम पर अगर उन्हें हर एक राष्ट्र को आत्मरक्षा के लिये या अन्तर्रा- लूटना हो, उनकी मिहनत का फायदा उठाना स्ट्रीय न्यायरक्षा के लिये सेना तो रखना ही पड़ेगी हो तब तो पाप ही है परन्तु अगर उन लोगों में कोई आदमी उस सेना में भरती हो या, लटने अन्याय अत्याचार आदि फैले हों और उन्हें दूर गया तो उसके द्वारा होने वाले वात को करना हो तो पाप नी है। पाप किसे ! प्रश्न :दि दो आदमी ऐसी जगह पहुंच ___ उत्तर- लड़ाई के उद्देश्य और रीतिनीति के गये हैं ज; खाने के लिये कुछ भी मिल नहीं अनुसार उस की जिम्मेदारी लाइक सकत, दोनों का मरना निश्चितसा हो गया है इसपर है-सैनिक पर नहीं। हां, सनिक में : - लिये अगर उनमें से कोई एक दूसरे को मारकर क्रूरता आजाय, वैयक्तिक द्वेष आजाय, अहंकार खाजाय, इसप्रकार रास्ता तय करके पार पहुंच आजाय तो उतने अंश में वह अवश्य पापी है । जाय तो इसे लाभ ही कहना चाहिये। प्रश्न- क्या सैनिकों को न्यायिक उत्तर--कदाचित् किसी अवसर पर थोड़ासा बिलकुल न रखना चाम्यि, क्या वे जड़ पदार्थ हामहो सकता है पर स्थायीरूप में इतनी की तरह लड़ाई की जिम्मेदारी से बिलकुल मुक्त है ? हानि होगी कि इसे महापाप ही मानना पड़ेगा। उत्तर-बिन खास युद्ध में सहायता पहुंचाने के निम्नलिखित चार बुराइयों के कारण भी इस लिय जो सेना में भरती होते हैं उनपर तो युद्ध पथ का स्याग करना चहिय । के उद्देश्य आदि की पूरी निकरी है। अगर (क ) दोनों ही ए। दूसर को मारकर यद्ध अन्यायपूर्ण है, स.न.म्पाद को पोषण के स्वयं बचने की कोशिश करेंगे, इससे सम्भवतः यह तो उसके लिये भरती होने वाले सैनिक दोनों ही लड़कर मर जायेंगे। अथवा मरनेवाला पापी हैं. प. जो लोग सेना में स्थार्यारूप मारनेवाल को मृतकप्राय जरूर कर जायगा। से भरती होते हैं उन को सिर्फ इतना देख लेना (ख) संकट का आभास होते ही दोनों भित्र चाहिये कि सेना के सञ्चालको की नीति क्या मन ही मन एक दुसरे के शत्रु बन जं.येंगे है। किसी देश को गुलाम बनाने, अन्याय और जल्दी से दी एक दूसरे को मार डालने से शासन करनेवाले या महान राजा की के पयंत्र में लग जायगे । इसस जो कष्ट और सेना में भरती होने से सैनिक पर भी उसके अशान्ति हो वह उपेक्षणीय नहीं कही जा पाप की जिम्मेदारी है। साधारणतः जो शासक सकती । (ग) इस उतावली में प्रायः अनाव
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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