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________________ भगवती के अंग - प्रश्न- एक प्रबल राष्ट्र ऐसा है जो किसी ४ सहज सहजपाल वह है जो हमारे किसी निबल राष्ट्र का घात नहीं करना चाहता पर विशेष प्रयत्न के बिना अनिच्छापूर्वक भी होता पारिस्थिति ऐसी है कि दूसरा प्रबल राष्ट्र निर्बल रहता है । जैसवमा आदि में होता है। राष्ट्रको हथयाकर पहिले राष्ट्र का घात करने शरीर में कोई कीटाणु पड़ गये और कोई वाला है ऐसी हालत में अपने बचाव के लिये औषध ली जिससे वे कीटाण मर गय. तो इसे उस छोटे राष्ट्र का घात करना स्वरक्षक बात भी नाज- कहेंगे। कहलाया या नहीं? ___ जो सूक्ष्म प्राणी देखने में नहीं आते उनका उत्तर-उस हालत में यह स्वरक्षक घात हो जाना भी महजचात है । जैस नहीं कहलायगा जब कि परिमिग- बाल जाने पर वह आदि में। छोटे किन्तु निर्दोष राष्ट्र की क्षतिपूर्ति कर दे। पानी में भी मार से अगोचर जो अन्यथा उसका तक्षक घात ही कहान मूक्ष्म प्राणी रहते हैं उनका बात हो जाना भी पश्न--एक वर्ग या राष्ट्र दूसरे वर्ग या राष्ट्र का है। पर जबर्दस्ती शासन करता है। शासन में साधारण चलने फिरने में भी जो पृथ्वी, अडंगा पैदा करने के लिये पीड़ित राष्ट्र का कोई जल, वायु के मूक्ष्म प्राणी मरते है वह सब व्यक्ति पीडक राष्ट्र के बयान को परेशान महजघात है। करता है कदाचित् जीवनघात भी करता है । सहजघात को प्राकृतिक भी कहते है कणों इस मामले में व्यक्तिगत वैर बिलकुल नहीं है कि इसकी जिम्मेदारी प्रकृति पर है मनुथ्यादि सिर्फ पीडक राष्ट्र के द्वारा होनेवाली जबर्दस्ती पर नहीं। यह व्यवहार पंचक का विषय नहीं को हटाने का भाव है तो इसे क्या कहा जाय ! है इसलिये व्यवहारपंचक के किसी भी भेद में उचर-यदि व्यक्तिगत द्वेष न हो तो यह इसे शामिल नहीं किया जाता । न्यायरक्षकघात कहा जा सकता है, पर इसमें ५ भाग्यज- जिसमें अकस्मात् ऐसे कारण विवेक की बड़ी जरूरत है । किसी भी कर्मचारी मिल जाते है कि जिस में न तो घातक का दोष का घात कर बैठना; अपनी इस उम्र नीति की होता है न घात्य का, पर घात हो जाता है। किसी भी तरह घोषणा न करना आदि अनुचित जैसे किसी स्थान पर सूचना करदी गई कि कोई है। मतलब यह कि विवेक के द्वारा यह निश्चय न आवे क्योंकि यहाँ बम बरसाने का अभ्यास करना चाहिये कि प्राणघात से वास्तव म अन्यायी किया जारहा है। पर कोई प्राणी पहरेवाले की शासन का ही घात हो, पेट भरने के लये किसी नजर में भी न आया, अपढ़ होने से वहाँ लगी तरह सरकारी मजूरी करनेवाले निरीह मनुष्यों का हुई सूचना न पढ़सका इस प्रकार उस जगह घात न हो। इस प्रकार विवेक और अकापामा पहुँच गया और बमवर्षा से उसका पात हो गया का खयाल रक्खा जायगा तो अत्याचारी शासन यह भाग्यज घात है। मतलब यह कि बचाने का या शासक को मिटाने के लिये किया गया प्राण- यत्न करने पर भी जब कोई अस्मिक घात हो घात न्यायरक्षक ही समझा जायगा । जाता है तब उसे भाग्यज धान कहते।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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