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________________ लोकनाधना [ २८४ काफी सहिष्णु और द्रदी हो उनके साथ ८ जहां एक देश या .एक नाति दुर्गर या अकेले अवधिमा बैफल्यदर्शनी, प्रेमदर्शनी देश या उसकी जाति पर शासित जाति की साधना का उपयोग करो । ऐसे मौके पर अनिष्ठा होने पर भी शासन कर रही हो अथवा उपेक्षिणी साधना भी बहुत काम दे जाती है । आक्रमण कर रही हो तो वहां साधारण क्योंकि इससे दूसरों का अभिमान जगना कम शिक्षणी का उपयोग करके संहारिणी का उपहो जाता है। पर यहां जहां तक हो सके योग करना चाहिये । अन्य साधनाओं का वहां संहारिणी साधना का उपयोग न करना चाहिये। कुछ उपयोग नहीं। आत्मरक्षा के लिये संहारिणी साधना अनिवार्य प्रश्न-संहारिणी साधना के लिये जिस हो उठे तभी उसका प्रयोग करना चाहिये सी शक्ति की जरूरत है वह शक्ति अगर किसी में भी उतनी ही, जितनी अनिवार्य हा। न हो तो क्या आपहिणी आदि साधनार न करे । ७-जहां कुछ स्वार्थी लोग स्वार्थ के लिये उनर-निवरस के कारण जहां प्रबोधिनी विद्रोह करते हो, जानकर हटने के लिये या यश साधनाओं का उपयोग किया जायगा वहां न तो पट अधिकार लिये अतिकता का नाम बाले साधक में बह हृदयशुद्धि होगी जो इन साधहो तो उनके विषय में :: शिक्षण का नाओं के लिये जरूरी है न अन्यायी में पश्चात्ताप का भाव आयगा, बड़ी मुश्किल से उसमें दया उपयोग कर संहारिणी का ही उपयोग करना चाहिये क्योंकि अन्य साधनाओं का इनके ऊपर का भाव आसकता है पर दयनीयता से साध कता निष्फल होती है। कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता । हां, अगर ये ऊपर के छठे भेद में इस तरह मिल गये हो कि प्रश्न-आग्रहिणी आदि साधनाएँ ऐमे अवइन को उनसे अलग न किया जा सकता हो सर पर निष्फल भले ही हों पर उनके प्रयोग से तो जबतक ही श्रेणी से इन लोगों में भेद न माथियों में एक तरह की स्फूर्ति पैदा होती है हो जावे तबतक छठी के समान ही इनके साथ संगठन और शक्ति आती है इसलिये उमे सर्वथा व्यवहार करना चाहिये । जैसे कुछ धूत नेताओं निष्फट नहीं कह सकते। ने एक जगह की जनता को अहंकार की शराब उत्तर-नकी उपयोगिता तो है पर बह पिलाकर अपनी मुट्ठी में कर लिया, इनके संहार प्रबोधिनी साधना के रूप में नहीं है वह है को जनत. अग्नः संहार समझने लगी तो वहां संहारिणी के रूप में । क्योंकि संहारिणी साधना जनता के और इनके साथ तबतक एकसा व्यव- की योग्यता पाने के लिये इसका उपयोग किया हार करना पड़ेगा जबतक जनता से ये अलग न जाता है। अगर संहारिणी की योग्यता न आवे समझे जाने लगे। हां, इनको अलग करने के या उसका उपयोग न किया जा सके तो निष्फल लिये जनता को भिन्नता का शिक्षण दिया जा है ही। सकता है जिससे इनकी धूर्तता का जनता को प्रश्न-संहार से संहार शान्त नहीं होता पता लग जाये। वह प्रेम या प्रबोधिनी साधना से शान्त होता है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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