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________________ २८३ ] सत्यामृत उपेक्षिणी योजनाधना के साधक थे पर साधारण करना चाहिये इतने पर भी असर न पड़े तो जनता के पालन के लिये उनने सब तरह की आग्रहिणी या संहारिणी का उपयोग करना चाहिये । साधनाओं के विधान बनाये थे और कथाओं ४--कुटुम्ब या कुटुम्ब के समान संस्था में द्वारा उनका स्पष्टीकरण किया था। यही हाल सर्वोत्तम साधना है आदर्शदर्शनी, दूसरे नम्बर म. बुद्ध का भी था ।म. मुहम्मद, म. कृष्ण, शिक्षणी, तीसरे नम्बर अन्य प्रबोधिनी साधनाएँ, म. राम ने तो अपने जीवन को ही प्रबोधिनी चौथे नम्बर संहारिणी । . और संहारिणी टोकसाधना की प्रयोगशाला ५- चोर डाकू व्यभिचारी वञ्चक, ताड़क बनाया था। आदि नैनिक अपराधियों के विषय में पहिले कुछ मृचनाएँ-... संहारिणी है, क्योंकि अगर उन्हें दंड न दिया व्यक्ति को और जनता को किस परिस्थिति जायगा तो जिनका उनने अपराध किया है उनके में किस लोयस ना का उपयोग करना चाहिये मन में सन्तोप न होगा, उनके जीवन में प्रतिक्रिया इसकी कुछ सूचनाएँ यहाँ दी जाती है। होगी, दूसरों का आवश्यक भय कम होने से -दर्शदर्शन .क्या व्यक्तिको पपोत्तेजना फैलेगी इसलिये उन्हें दंड देना आवक्या जनता को, सब को उपयोगी है और प्रायः हर श्यक है जोकि संहारिणी लोकसाधना है। पर हालत में उपयोगी है। हां, इतना ध्यान में रखना साथ में शिक्षणी लोकसाधना भी होना चाहिये। चाहिये कि यह हर हालत में नहीं है। सामूहिक दृष्टि से इनके विषय में ही दो साधनाएँ सिवाय अन्य साधनाओं की भी जरूरत पड़ती है। उपयोगी है । पर हाँ, व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार आदर्शदर्शनी प्रेमदर्शनी और उपेक्षणी का भी उपयोग कर सकता है पर आपहिणी उपेक्षणी साधना प्रायः अपने व्यक्तिगत जीवन विन और कल्यदर्शनी का उपयोग प्रायः ठीक नहीं। भी रखना चाहिये या अपने समान साधको क्योंकि इन दोनों साधनाओं से ये साधक को का संघ बनाना हो तो उन तक रखना चाहिये । दयनीय समझने लगते हैं । जहाँ दयनीयता आई पत्र का विचार किये बिना जन-समास कि साधकता निष्फल हुई । को :मकर साधक न बनाना चाहिये। ६-जब एक ही देश, प्रांत, नगर, मुहल्ला आदि ३-मिनी-साधना का उपयोग अवसर में दो दल आपसमें लड़ते हों लड़ने का ध्येय देखकर प्रायः सब जगह किया जा सकता है। भक्षण नहीं तक्षण हो, किसी अज्ञानता के कारण पर इसे पर्याप्त नहीं कह सकते । यत स्थान पर उनमें शत्रता की कल्पना आ गई हो, अहंकार इसकी सफलता के लिये संहारिणी, अथवा आदर्श- जग पड़ा ही तब वहां आदर्शदर्शनी के साथ दर्शनी आदि एक या अनेक प्रबोधिनी लोक- शिक्षण कमावना विशेष उपयोगी है। अपने साधनों की मन की । अर्थात् न्याय को नियम बनाकर उन्हें समझाओ बुझाओ, यही की बात समझाने पर अगर अन्य के न जंचे सर्वेत्तम उप य है। इतने पर भी काम न चले तो अपना जीवन अदर्श बनाकर उसे प्रभावित तो स्वयं या अपने समान ऐसे लोग चुनो जा
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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