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________________ २७७ ] सत्यामृत की यही मर्जी क्या कम है कि उसने हमें है। कभी कभी ऐसा होता है कि दुनिया भ्रमकिसी न किमी से अच्छा बनाया। वश पवित्र जीवन को अपवित्र समझ लेती है , मालिक ने एक एक से बढ़कर बना दिया। पर अगर ईमानदारी है तो काल जीवन की सौ से बुरा तो एक से अच्छा बना दिया ॥ पवित्रता प्रगट कर देगा और साथ ही मन में वे रोते आदमी को हँसा ही न देते थे इतनी शान्ति, सन्तोष और गौरव रहेगा कि हम किंतु उसका दुःख बिलकुल भुला देते थे। उनके सब दुःख भूल जायगे । इसलिये जीवनकला में पास बैटने को आदमी लालायित रहते थे। ईमानदारी सब से पहिली चीज है। रुदन्तभाई को इसस इयां होती, वे हसंत दूसरी बात जनसेवा और नि है । भाई के बार समझते या बदमाश कहते, अपना बोझ दूसरों पर कम से कम डालकर उन लोगों को मर्च उल्लू नासमझ आदि कहकर की जितनी सेवा की जासके उतनी करना चाहिये । उनकी घृणा बढ़ाते । एक ता वे यों ही बहुत भगवती की जीवन-साधना इन दो बातों दुःखी ये पर पछि से इस ईर्ष्या के सामान ने पर निर्भर है । यद्यपि जवन माधना के और और दुःखी बना डाला। सामग्री एकसी थी पर भी अंग हैं जैसे बाल-समन्वय । इनका उल्लेख एक भाई रुदन्त था और एक हसन्त था। दृष्टि कांड में हो चुका है । मन-साधना का केन्द्र पहिला मूढ था, दूसरा चतुर कलाकार था। मन है, जीवन-मन का केन्द्र मन,तन, वाणी ___ यह उन ' और भी बढ़ाई जा तीनों है । मनसाधना और जीवन साधना, दोनों सकती है, हर एक मनुष्य के जीवन में ऐसे वो एक शब्द में कहना चाहें तो इसे आममयना अक्सर मिलते हैं जब वह अपन यिन के चतुर कहसकते है। कलाकार के समान सजा सकता है या अना। लोकमाधना बन कर नष्ट कर सकता है । सब से मुख्य बात यह बन के मूल में ईमान रहना चाहिये का मतलब है जगत में से बड़ी चतुरता है । हम दुमरों भगवती अहिंसा का प्रसार करना अर्थान् दुराचाको कितना भी धोखा देने की कोशिश रियों को सदाचारी बनाना, बेईमानों को ईमानदार करें पर दुनिया की अपेक्षा हम ही अधिक धोखा बनाना, जो न बनसके उन से दूसरों को बचाये बायगे । कानून की पकड़ में हम भले ही न रखना अथवा उनके चारों और अन्यायों से आ पर दिल की काट म तो आ ही जाने है। जगत को मुरक्षित रखना । इस प्रकार लोकइसलिये दनिया और पोई दंड भले ही न दे जीवन की शुद्धि और न्याय का पचार भगवती हर निन्दा का दंड तो अवश्य दे की है। सकती है जो कि अंत में हमारी: अनक सुविधाओं यह तो आवश्यक ही है कि जो भगवती सब कीर्ति को नष्ट कर सकता है। की कसायना करेगा वह मन कर 1 का मनुष्य धोख में आ भी लेगा। खुद बेईमान हो वह दूसरों जपर सबकी परीक्षा कर लेता की ईमानदार क्या बनायेगा ! और दूसरे बेर्डग नों
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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