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________________ २६१ ) सत्यामृत से कहा- आप लोग कुर्सियां उठालेजाइये तुच्छ न थे, वे गादीवाले आसन पर जमकर हम लोग जान पर बैठेंगे, मेहमान हैं तो क्या बैठ गये । अब मुझे वह गादी भीष्म की बाणआपके सिर पर बैटने के लिये । उनकी इस विनी- ' शय्या से भी अधिक कटीली मालम होने लगी तता से खुश होकर लोगों ने कर्मियां उठाली उनने खिलापिला कर जो मेरा आदर किया था पर जब आप अध्यक्ष बनाये गये तो आपको वह सब मिट्टी में मिल गया उनकी तुच्छता पर कुसी की जरूरत पड़ी तब आप कुसी का अस- मुझे हसी भी आई और घृणा भी हुई । उनन तो पन राज्य पाकर आराम से कुर्सी पर बैठे । इससे सोचा होगा कि मैं प्रभावित होगया इसलिये इस वे आसमान में कितनी ऊँचाई रचे यह तो कुटिल आत्मप्रशंसा का उपयोग किया गया पर किसे मालम पर उनके मित्रों के दिल में उनका इससे उनने घृणा ही पाई । पछि तो मालूम हुआ स्थान सदा के लिय बहुत नीचा हो । या । यह कि ये श्रीमान्जी उन महाशयों में से हैं जो पाच कुटिल आत्मप्रशमः का फल था। __ का दान करके दम रुपया उस मे विज्ञापन में ग-एक बार मुझे एक ऐसे श्रीमान का मह- खर्च करते है इसलिये बेचारे यश के लिये बहुत मान बनने का दुर्भाग्य प्राप्त हुआ जिन्हे कुटिल परिश्रम करते हैं पर निन्दा ही पाते हैं । आमप्रशंसा की बीमारी थी । उनने मुझे अनेक घ-- बात काफी पुरानी है, उस समय मगध तरह की मिठाइयां और अच्छे अच्छे व्यञ्जन परोसे में बहुत से गणतन्त्र राज्य थे जो कि आसपास यह कल्पना तो मुझे अच्छी न लगी कि उनने अपने के एकतंत्री राज्यों की अँखों में खटकते थे । एक वैभव का प्रदर्शन किया है, मैंने तो यही समझा गणतन्त्र के मुखिया दो भाई थे जो बड़ी बहादुरी कि मेरा असाधारण आदर करन के लिये उनने और होश्यारी से अपने पत्रब: रक्षा करते थे। यह तकलीफ उठाई है । भोजन के बाद उनने एक बार उन्हें पता लगा कि उनके राज्य पर २.६१-चरिये, घुमने चलें उनने बग्घी मगाई। आक्रमण होनेवाला है इसलिये एक भाई सैन्यउसमें एक साथ दो आदमी बैठ सकते थे पर संग्रह के काम में लग गया और जैसे आदमी अंमन में आध, जगह पर रई की अदिया मिल वह सेना में भरने लगा, दूसरे भाई ने कहा गादी विद्या रक्खी थी और पीछे टिकने के लिये चुने हुए आदमियों को ही सैनिक बनाना चाहिये एक तकिया था। बाकी आधी जगह पर यह सब इस प्रकार भीड इय ही करने से कुछ लाभ नहीं नहीं था। जब गाड़ी पर चढ़ने का अवसर आया पर पहिला भाई भीड़ उक्ट्टी करता रह।। पर तो आपने मुझे पहिले बैठने के लिये है।-अभि- ज्यों ज्यों लड़ाई का अवसर पास आने लगा त्यों मान न मालूम हो इसलिये में खाली जगह पर यों सनिक भागने लगे इसलिये उसने सोचा यह ग्या, सोचता था कि विद्वान् व हटाने के ठीक नहीं इनमें से अच्छे अच्छे सैनिक चुन लेना लिहाज से नही तो मेहमान हटाने के लिहाज चाहिये। पले भाई का यह परिवर्तन देखकर में ही ये श्रीन । ॐ अस्य मुझ में गादी- दूसरे भाई को कुछ घमंड आया कि आखिर इन्हें मारे आमन पर बैटने का अनुराध करेंगे। पर मेरे रास्ते पर ही चलना पड़ा । घमंड को वह मा तु या श्रीमान ज. उससे कुछ कम दया न सका । उसने पहिले मई में कहा
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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