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________________ भगवती की साधना [२६२ आखिर आपको मेरे रास्ते पर ही आना पड़ा मुझे उनके शिष्य का भी लोग काफी आदर करते थे। आपके मतपरिवर्तन से प्रसन्नता हुई है, अब अपना विनर और विद्वान् था पर उसमे काम अच्छा चलेगा। कुटिल मास की बड़ी बीमारी थी, इसके __ पहिले भाई का मतपरिवर्तन हो ही गया लिये यह एक न एक कुटिल उपर काम में लाया था पर दूसरे भाई ने अच्छा काम चलने के बहाने करता था। पाहेला काम उसने यह किया कि जो आत्मप्रशंसा की उसने विष घोल दिया । अब हरिहरमंदिर का नाम विनय दर कर सुव्यवस्था का प्रश्न न रह गया। प्रश्न अपने अहं- दिया । हरिहर शब्द उच्चारण में सरल और कार का रह गया । अब पहिले भाई ने यही छोटा होने पर भी अर्थ में कैसा काटिन है इस समर्थन करना शुरू कर दिया कि जैसे भी मिलें पर उसने एक दिन अच्छा व्याख्यान भी दे सैनिक भरती किये जय दुसरे ने कहा-नहीं, चुने डाला । पर शब्दों की दीवार शब्दों से ही हुए आदमे ही सैनिक बनाये जायें। अब काफी अभेद्य हो सकती है, वह दिल से अभेद्य नहीं शक्ति इन झगड़ों में जाने लगी, अव्यवस्था भी हो सकती। दिल तो उसे भी पारकर तथ्य को फैली, दोनों में विरोध भी बढ़ा, विरोधियों को पकड़ लेता है, इसलिये लोग चौकने हो गये । पता लगा, मौका पाकर उनने उस गणतंत्र को उनने कहा तो कुछ नहीं, पर समझ लिया कि नष्ट कर डाटा । इस प्रकार अभिमानका यो:- पुजारी भगवान के बहाने अपनी सी आत्मप्रशंसा ने सर्वनाश कर दिया। पूजा और कनिन कराना चाहता है। पर शिव हु-उस जमाने की बात है जब भारतवर्ष नारायण तो कुटिल में अन्धा हो में आर्य और नागद्रविड आदि में संस्कृतिक एकता रहा था, लोगों की अरुचि उसे न दिखी और का प्रयत्न चल रहा था इसलिये शिव और विष्णु उसे दिन की बीमारी हो गई । उस एक ही परमात्मा के अंश माने जाने लगे थे और समय लोग आपस में शिष्टाचार के तौर पर उनमें आवरोध बतलाकर दोनो जातियों का हरिहर' बोलते थे जैसे कि आजकल शमराम' सम्मिलन कराया जाता था। जनमेजय का नाग- बोलते है । पर शिवनारायण ने हरिहर' की यज्ञ बन्द करानेवाले आस्तीक मुनि की परम्परा जगह मिलनार ' का प्रयोग करना में नागार्य नाम के एक महर्षि हए थे जिनने शुरू किया । हरिहर मन्दिर बनाकर आर्य-अनार्य सब को एक महर्षि नागार्य को जब कोई प्रणाम करता स्थान पर मिलाने की कोशिश की थी । इस तब वे मस्तु' कहकर आशीर्गद देते थे मन्दिर में विष्णु और शिव दोनों की मूर्तियां थीं पर पिनास को जब कोई प्रणाम करता तो इसके प्रताप से शैव और वैष्णव आर्य और अनार्य शिवमस्तु' कहकर अदीद देता था। फल यह का भेद मिटता जाता था। हुआ कि लोगों को यह शिव शब्द भी काटेसा महर्षि नागाय के मरने के बाद उनके चुभने लगा। शिष्य शिवनारायण के हाथ में मंदिर का प्रबंध हरिहरमंदिर को समानत लोग मंदिर आया । नागार्य को लोग बड़ी श्रद्धा से देखते थे कहा करते थे । हरिहर तो प्रकरण से ही समझ
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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