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________________ भगवती की साधना 1 लाज़िमी हो जाता है । ऐसे अवसर पर विचार करके जिससे निःस्वार्थता का परिचय मिले और सामूहिक रूप में समाज हित अधिक हो वही काम करना चाहिये, अगर एक तर न्यायरक्षा हो और दूसरी तरफ विश्वासघातकता हो तो दोनों का बलाबल देखकर ही कर्तव्य निर्णय करना उचित है । यद्यपि पहिले कुछ दृष्टांतों द्वारा प्रेम और मोह का अन्तर और उनका परिणाम बताया जा चुका है फिर भी यह विषय इतना जटिल है कि इसको अधिक से अधिक साफ करने की जरूरत है, इसलिये एक उदाहरणमाया के द्वारा कर्तव्य निर्णय करते हुए प्रेम और अतर दिखाया है व्यापक अधिक १. विभीषण ने रावण के अन्याय से ऊब कर राम का पक्ष लिया । अगर विभीषण में लङ्का के राज्य हथियाने की बासना बिलकुल न हो तो भिषण में न तो रावणद्वेष माना जा सकता है न राममोह, दोनों जगह प्रेम ह अगर राज्य हथियाने की वासना हो तो न्यायक्ष लेवर भी वह स्वार्थी माही आदि 1 २– एक राजाने मेरे देशमें इसलिये धर्मप्र - चारक भेजे कि उसके धर्म का प्रचार होने से उसे साम्राज्य बढ़ाने में सुभीता होगा, अगर धर्मप्रचारकों को सताया या मारा जायगा तो मेरे देश पर आक्रमण करने का उसे बहाना मिलेगा, ऐसी हालत में मैं उस धर्मप्रचार का भी विशेष करूं तो यह देश मोह नहीं, देश-प्रेम होगा । ३ - एक ड. कू अपने बेटे को खूब चाहता है और कोशिश करता है कि यह मुझसे भी बढ़िया डाकू बने । बेटा भी बापको खूब चाहता है। पर बड़ा होने पर वह डकैती को पाप समझकर [ २५८ पिता का साथ नहीं देता । डकैती में कभी बाप घायल होकर आजाता है तो वह बाप की सेवा करता है पर बाप डाका न डालने पावे इस की कोशिश भी करता है, जहाँ डाका डालने का विचार किया जाता है वहाँ के भी कर देता है। बाप को दंड देता है, बेटा सहलेता है पर अपने न उसे दुःखी देखना मोही नहीं प्रेमी है । इस पर क्रुद्ध होकर बेटे चुपचाप विनयपूर्वक दंड पापी वापसे द्वेष नहीं करता चाहता है तो वह बेटा ४- एक आदमी इसलिये अपने धर्म की तारीफ करता है कि वह उसका धर्म है तो यह धर्मप्रेम नहीं धर्ममोह है। इस प्रकार जाति कुल देश प्रान्त आदि की भी बात समझना चाहिये । ५- एक आदमी ने एक अनाथ लड़के का पुत्र की तरह पालन किया, वह आदमी व्यापार में कुछ मिलावटी चीजों का उपयोग करता है। लड़के को इस रहस्य का पता है, वह इसे अनुचित समझता है इसलिये उस में भाग नहीं लेता फिर भी अपने पालक का रहस्य इसलिये जगत् को नहीं बतलाता कि इससे पालक के मनने अनाथ बच्चों को पालने से घृणा न हो जाय, ऐसी हालत में वह लड़का अपने पालक का प्रेमी है मोही नहीं । पर अगर वह आदमी किसी भी स्त्री पर बलात्कार करने या हरण करने का षड्यन्त्र रचता है और लड़के को मालूम हो जाता है लड़के का अवसर है कि वह उस स्त्री को सतर्क करदे फिर भी यह नहीं करता तो लड़के को प्रेमी नहीं मोही कहना चाहिये । साधारण मिलावटी चीज मिलाने में और एक स्त्री पर बलात्कार करने में पापका इतना अन्तर है कि एक जगह मौन क्षम्य है दूसरी जगह नहीं है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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