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________________ सत्यामृत __मोह तो एक आसक्ति है-भख है। भूख वुझ- कषाय-किट है, अपने को प्रेमी कहलेना एक जाने पर या कोई दूसरी अच्छी चीज़ मिलजाने पर बात है पर प्रेमी होना दूसरी बात है । दाम्पत्य मोह नष्ट हो जाता है या शिथिल हो जाता है या कौटुम्बिकता या मित्रता में कोई अपने मित्र के जबकि प्रेम बना रहता है वह कर्तव्य की बुरे काम का विरोधी हो सकता है, पर अपने उपेक्षा नहीं करता । रावण को मन्दोदरी से मोह मित्र का विरोधी नहीं हो सकता । मन्दोदरीने था इसलिये सीता के देखते ही वह शिथिल हो रावण के बुरे काम का विरोध किया पर रावण गया और वह सीता को चुरा लेगया । किन्तु की सेवा नहीं छोड़ी। हालाँकि रावण का राम सीता में परस्पर प्रेम था-मोह नहीं था, अपराध इतना बड़ा था कि मन्दोदरी अगर अपना इसलिये रावण की असीम साम्राज्य लक्ष्मी देख पुनर्विवाह करलेती तो भी वह क्षम्य होती पर कर भी सीताजी का राम प्रेम कमन हा और उसने यह नहीं किया तब जीवन की छोटी छोटी रामचन्द्र में सीताजी की रक्षा के लिये एक भूल दिखाकर के प्रेम कम करना या छोड देना बड़े सम्राट् से भी भिड़ पड़े, किन्तु प्राणों की बाजी पूरा दंभ है-छल है। प्रेम पाप में सहायता लगाकर भी जिस सीता को लाये उसे प्रजानुरजन के करने को प्रेरित नहीं करता पर अपने कर्तव्य लिये छोड़ भी सके, और छोड़ने पर भी के उत्तरदायिन्त्र को नहीं भूलने देता। वफादार रहे, उनने सांता को दिल से न जहाँ प्रेम है वहाँ न्यायपरायणता और हटाया, यज्ञ के लिये सहधर्मिणः की आवश्यकता कि उत्तरदायित्व इन दोनों का निर्वाह हुई ते सीता की मूर्ति रक्या र दनरः विवाह से होता है यह बात कल्याणी देवी की कथा न किया। प्रेम और मोह में क्या अन्तर है यह से साफ हो जायगः । बात म, राम और रावण की मन कृत्तिके भेद से कल्याणी देवी की कथा समझी जा सकती है। प्रेमी-राम कर्तव्य-परायण पुराने समय में भारतवर्ष में कल्याणी देवी रहे, विश्वसनीय रहे, अपना भी कराया, जगत नाम की एक विदुषी महिला रहती थी। उनके का भी भला किया, मोहरम न स य । पति का नाम था शारदाचरण । वे राज-पुरोहित हा नवरय सण, स्वयं नष्ट हुआ, हजारी थे, राजकोष की तरफ से उन्हें काफी धन का नाश कराया। ये भी है मोह नरक है। लता था। दोनों बड़े मजे में रहते थे। पति प्रश्न--येक प्राणी गुण दोषों का पिंड है, पक्षी का अधिकांश समय विद्या व्यासंग में आराम सभी से अपराध होते हैं उनका बहाना निकाल से कट जाता था। कुछ दिन बाद राजदीर में कर कोई भी पनी पति से घृणा कर सकती है एक महर्षि आये जिनने अपने अनुभव और ५ पति पनी सणा कर नई कि मैं तो विचार से सरस्वती की उपासना की थी। उस प्रेमी र मोही नहीं .. मोहयश हो कर समय के रिवाज़ के अनुसार दोनों में वाद हुआ दोषी का पक्ष नहीं सकता इस प्रकार प्रेम की और देश में कोई बड़ा विद्वान न होने से कल्याणी यह नि:पक्षना दाम्पत्य के नष्ट ही कर देगी। देवी ही मध्यस्था बनाई गई। कल्याणी देवी को उत्तर-- यहां प्रेम नहीं है, छल नामक यह बात जची कि महर्षि का पक्ष ही सच्चा सिद्ध
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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