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________________ भगवती की साधना । २३८ काम है । यहां काम का अर्थ है मन या इंद्रियों मालिश कर लेना भोग है उसे सूंघ लेना की प्यास बुझाना । यह रुचि का भेद होने से उपभोग है। रुचि की मर्यादा इसे भी लागू है इसलिये यह प्रश्न-- जो परमाणु संघ लिये जाते हैं वे तो विश्वहित के विरुद्ध न होना चाहिये । स्वादिष्ट फिर नहीं सैंधे जाते इसलिये उन्हें भोग ही क्यों भोजन की इच्छा, सुगंध लेने की इच्छा, गीत न कहना चाहिये ! संगीत आदि सुनने की इच्छा, प्राकृतिक या और उतर- भोग उपभोग का विचार फूल की किसी तरह के सुदृश्य देखने की इच्छा, कोमल दृष्टि से करना है उसकी गंध की दृष्टि से नी ! विस्तर आदि की इच्छा, या पति पत्नी सम्मिलन __गंध तो स्वाभाविक गतिसे फैल ही रही है। फल के र की इच्छा, यश आदर सत्कार की इच्छा, यह सब जो गन्ध परमाणु हवा में फैल रहे हैं व नाक में काम है । यह प्रायः सभी को होती है । पर जो गये या और कहीं इस का फल से कोई सम्बन्ध संयमी है वह इनमें से उतने का ही सेवन करता करता नहीं इसलिये वह फट का उपभोग ही कहलाया। है जो विश्वप्रेम या विश्वहित के विरुद्ध न जाय जब कि मोही व्यक्ति इनका इतना सेवन कर जाता है कि जहाँ दो प्राणी एक ही क्रिया से एक दूसरे विश्वहित नष्ट हो जाता है न्याय अन्याय की उसे का एक तरह का भोग करते हैं उसे सहभोग पर्वाह नहीं होती । काम मर्यादित हो तभी वह __कहते हैं । भोग और उपभोग में एक कामी रहन रुचि का भेद बनता है। है एक काम का विषय, सहभोग में दोनों कामी रहते हैं दोनों ही काम के विषय | जैसे पानिपनी के इस काम के चार भेद है भोग उपभोग सइ- कामक्रीडा में दोनों एक दूसरे का एक तरह का भोग स्वभोग।किसी चीज का ऐसा उपयोग करना भोग करते हैं दोनों को स्पर्श सम्बन्धी सुख जिससे दृमरे बार अपने लिये उसकी वैसी उपयो मिलता है इने सहभोग कहते हैं । भोग उपभोग गिता न रहे भोग है। जैसे रोटी खाना पानी पीना में भोज्यभेजकभाव एकतर्फी रहता है सहभोग आदि । रोटी खा लेने पर खाई गई रोटी फिर अपने लिये जाने की चीज नहीं रहती इसलिये में दुती, यही सहभोग की विशेषता है। यह भोग है। रोटी पेट में जाने पर वहां के कभी कभी सहभोग उपभोग भी बन जाता कृमियों के खाने के काम भले ही आवे पर वह है। एक में काम की इच्छा हो और दूसरे में अपने खाने के काम नहीं आ सकती इमलियनोगहै। काम की इच्छा न हो इस प्रकार एक की रुचि ऐमा उपयोग कि एकबार उपयोग लेने के बाद और दूसरे की अरुचि में जो सहभेग की क्रिया भी वस्तु मरे बार अपने उपयोग में आ सके की जायगी वह सहभोग न रहेगी उपभोग हो उपभेग है जैसे पलंग आदि । एक ही चीज जायगी। क्योंकि इस में अननियादा प्राणी किसी दृष्टि से भोग है किसी दृष्टि से उपभोग। भोक्ता नहीं बनपाता । बलात्कार की घटना एक फूट देखने और सूबने की दृष्टि से उपभोग सहभोग नहीं है उपभोग है। है किन्तु आवश्यकतावश मसठकर उसका लेप प्रश्न- एक आदमी सुन्दर गान गारहा है कर लिया जाय तो भोग हो जायगा । तेल का उसके गान से लोग खुश हो रहे हैं और लोगों
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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