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________________ कल्याणपथ [५२८ - - ज्ञान शाख आदि से पाया है और उसका असर देता है उस मार्ग पर चलकर दुनिया को आगे की भी उसके जीवन पर हुआ है वह किसी न किसी तरफ खीचता है । वह दुनिया का तारण करता भंश में कल्याणवथ पर चला है या चलने को है दुःख समुद्र से पार करता है इसलिये वह उत्सुक हुभा है । पर जिसे पूर्ण ज्ञानी नहीं कह तारक बुद्ध कहलाता है। सकते। स्वयंबुद्ध की अपेक्षा इसके ज्ञान में यह ७-अंशदृष्टा वह है जिसने कल्याणपथ के विशेषता पैदा होजाती है कि यह कल्याणपथ ज्ञान का अंश अपने अनुभव से पाया है पर युग की अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों और उनके हल के अनुरूप जितना ज्ञान चाहिये उतना ज्ञान करनेके उपायोंसे सुरिचित होजाता है । तीर्थकर नहीं पा सका, दृष्टा होने से उसके जीवन पर पैगम्बर आदि महात्मा तारक बुद्धकी श्रेणी में ही उसका अपर हुआ है। भाते हैं। - ८ बोधिन बुद्ध वह है जिसने शास्त्र पढ़- बहुतसे स्वयंबुद्ध भी ममुक अंशमें तारक होत कर या उपदेश सुनकर कल्याणपथ के रहस्य को के रहस्य को है पर उनकी तारकता गौण और अल्पमात्रा में हैं पर उनकी तारकता गौण आर पूरी तरह जान लिया है और उसके जीवन पर होती है। बोधित बुद् भी तारक होते हैं पर ये उसका पर्याप्त अमर है। मुख्यतासे तारक बुद्धके बताये मार्गपर ही खुद ९-स्वयंबुद्ध यह है जिसने मुख्यता से चलते हैं और लोगोंका चलाते हैं। अपने अनुभव के आधार पर कल्याण पथ खोज स्वयंबुद्ध और बोधितबुद् ध्यानयोगी भी निकाला है उसका अनुभव किया है । इसप्रकार होमकते हैं पर तारक बुद्ध कर्मयोगी ही होता है। अपनी विचार कता और निरीक्षण शक्ति की भले ही उसका कर्मयोगी रूप सन्यासियों सरीखा मुख्यता से पर्याप्त ज्ञानी बनगया है। हो । महावीर बुद्ध ईसा सन्यासी सरीखे रहकर भी प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी अंश में दूमरों से कर्मोगी थे तारक बुद्ध थे। मुहम्मद आदि गृहस्थ बोधित होता है और स्वयं भी कुछ अनुभव और होकर कर्मयोगी और तारक बुद्ध थे। विचार करता है पर यहां मुख्यता से मतलब है। ज्ञान की मुख्यता से जो ये दस स्थान बताये जिसने मख्यता से कल्याणपथ का ज्ञान किसा चौट आचारस्थानों में इस प्रकार आते है । व्यक्ति या शास्त्र से पाया, बढ़ाकर उसे शुद्ध और १ अबोध्य गर्तस्थ पूरा किया है वह बेधित है और जिसने मुझ्यता २ अज्ञानी से अपने अनुभव और विचार से उसे समझा है खोजा है निश्चित किया है वह बहिर्दृष्टा भूमिस्थ - १० -तारक बुद्ध वह है जो स्वयबुद्ध होकर ५ छायाज्ञानी दुनिया के उद्धार के लिये आना जीवन लगादेता सदृष्टि से ६ सुबोधित है और दुनिया सत्यअहिंसामय कल्याण पा तपस्वी तक । अंशदृष्टा सके इसके लिये एक साफ सच्च। मार्ग तैयार कर ग्यारह स्थानों में Mms ३ हिानी ,
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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