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________________ सत्यामृत [ ४२७ की भावना, और सामाजिक सहयोग से प्रत्येक कि ज्ञान की दृष्टिसे भी जो विकास होता है मनुष्य को कल्याणपथ में आगे बढ़ना चाहिये । उसका सम्बन्ध इन चौदह आचार-स्थानों से कैसा वही स्वर्ग युग होगा जब संसार कल्याण- है। ज्ञानको दृष्टि से हम प्राणियों के दस भेद करसकते पथ के पथिकों से भरजायगा। हैं। १ अबोध्य, २ अज्ञानी, ३ बहिर्जानी, ४ बहिप्रश्न-बारह श्रेणियों या चौदह स्थानों दृष्टा, ५ छायाज्ञानी, ६ सुतोधिज्ञ, ७ अंशदृष्टा, के वर्णन से क्रम विकास को समझने में सुभीता ८ बोधित बुद्ध, ९ स्वयंबुद्ध, १० तारक बुद्ध । हो गया पर साधारण साधु और ऐसे विशेषज्ञानी १-अबोध्य उसे कहते हैं जिसमें कल्याणपथ साधु जो अपने ज्ञानबल से दुनिया का बहुत को समझने की योग्यता नहीं है । अधिकांश बड़ा कल्याण कर जाते हैं, तीर्थंकर पैगम्बर पशुपक्षी आदि इस श्रेणीमें आते हैं । मसीहा बनकर मानव समाज में आध्यात्मिक और २- अज्ञानी उसे कहत हैं. जिसे कल्याणपथ सामाजिक क्रान्ति कर जाते हैं, उनका श्रेणियों में को जानने का अवपर ही नहीं मिला. नगि खास स्थान होना चाहिये । झान की दृष्टिसे भी मिला, न सत्संगति मिली। तो जीवन का विकास होता है, उसका उल्लेख ३-बहिनी वे हैं जो कल्प ण पथ को यहाँ क्यों नहीं ? नहीं जानसके पर स्वार्थ और विषयों से सम्बन्ध उत्तर-संयम के लिये जो आवश्यक ज्ञान है रखनेवाली बहुत सी बातें जानते हैं । ये बातें उनका साधारण उल्लेख सदृष्टि श्रेगी में है ही उनने अनेक लोगों के ग्रन्थ पढ़कर या बातें और योगी के चिन्होंमें भी इसका उल्लेख है। सुनकर सांखी हैं । यहि न बुरी चीज नहीं है तपस्त्री की श्रेणी में भी स्वाध्याय नामका तप पर कल्याणपथ के ज्ञान के बिना वह ऐसा है पहिला तप बताया गया है। संयम का विकास जैसा प्राण के बिना शरीर। होगा कल न कुछ ज्ञान का विकास होता ही ४-बहि दृष्ट। वह है जिसने अपने अनुभव है. इसलिये संयमस्थानों में ज्ञान का विकास भलग से बहिर्ज्ञान की खोज की है और बहिनि के बनाने की जरुरत नहीं है । दूसरी बात यह है कि रहस्य को अपने अनुभव में लाया है । भौतिक कोरी जानकारी बढ़ने से मनुष्य का वास्तविक विकास विषयों के अविष्कारकों का ज्ञान इसी श्रेणी का है। नहीं है। जब संयम आजाता है तब उसके ५-छायाज्ञानी वह है जिसने कल्याणपथ का अनकल ज्ञान अवश्य होता है पर ज्ञानके होने से ज्ञान शास्त्रों को पढ़कर या ज्ञानियों के उपदेश संयम के होने का नियम नहीं है । वैज्ञानिकता सुनकर पालिया है पर उसका मर्म नहीं समझा है, से भरा हुआ असंयमी जगत नरक होगा जब कि इसलिये उसके जीवन पर उसका विशेष असर थोडे ज्ञानवाला संयमी जगत स्वर्ग से बढ़कर होगा भी नहीं हुआ है । इसलिये कहना चाहिये कि वह इसलिये जीवन-विकास में संयम को ही महत्व दिया कल्याण पथका ज्ञान नहीं पासका, उस की छाया गया है। पासका। फिर भी यहाँ इतनी बात बतलादी जाती है ६-सुबोधित वह है जिसने कल्याण का
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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