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________________ कल्याण पथ - से ईमानदारी का व्यवहार नहीं हो सकता तो दूसरी अर्थात् सामाजिक श्रेणी की प्रतिज्ञा उसे भी पागल कहा जायगा। ___ या दीक्षा जनता के समक्ष ही लेना चाहिये क्योंकि शी, प्रामाणिकता, विनय, शिष्टाचार स्वा- उसका सम्बन्ध बहुत सी सामाजिक बातेंसे ध्यय आदि ऐसे कर्तव्य हैं जिनका पालन हर है। जनता के सामने दीक्षा लेने से जनता पर एक को करना चाहिये । भले ही उस ने निय- अच्छा प्रभाव पड़ेगा, सामाजिकता बढ़ेगी और मानुमार किसी श्रेणी को ग्रहण किया हो या न अपने में शिथिलता न आने पायगी। किया हा या सिर्फ नीची श्रेणी को ग्रहण अभ्यासी श्रेणी की दीक्षा नहीं होती, वह किया हो। अपने ही आप आचरण करने की चीज़ है। यहां जो श्रेणी-विभाग बनाया गया है व्रती की दीक्षा लेना चाहिये । उसके दो कारण हैं- पहिला यह कि व्यवस्थित सुशील बनने की प्रतिज्ञा गुरु के सामने रूप में वह क्रम विकास कर सके। इसी बात लेली जाय तो काफ़ी है। यह कि व. सदाचार का पालन कर्तव्य समझकर सद्भोगी सदा जीवक की दीक्षा जनता के करने लगे। कोई देख वाला हो या न हो, सामने विशेष उपयोगी है। राज्य से और समाज से दंड मिलने का भय हो निर्भार की दीक्षा गुरु के समक्ष या अपने या न हो, १! वह अपने सदाचार का पालन आप लेलेना चाहिये। अवश्य करेंगा हो सकता है कि किसी दिन सारी दिव्याहरी की दीक्षा भी अपने आप या राज्यसत्ता उसके हाथ में आजाय, उसको दुराचार गुरु के समक्ष लेलेना चाहिये। का दंड न दिया जा सके, या ऐसा अवसर हो साधु-दीक्षा कुछ विशेषरूप में जनता के कि जहाँ पर किये गए दुराचार आदि को कोई समक्ष होना चाहिये । प्रमाणित न कर सके, तब भी वह दुराचार का तपस्वा का दाक्षा तपस्वी की दीक्षा अपने आप या गुरु के सवन न करेगा; मतलब यह कि सदाचार उसका समक्ष लेलेना चाहिये। स्वभाव, या आदत बन जाना चाहिये । अंगी में योगी की कोई दीक्षा नहीं होती। अने का यही मतलब है। विशेष गक्तियों को कोई भी दक्षिा लेभे ___हां, यह हो सकता है कि श्रेणी में आने की ज़रूरत नहीं है। जिस की इच्छा हो वह का भान रहने के लिये अगर कभी शिथिलता किसी भी श्रेणी की दीक्षा जनता के समक्ष ले आवे तो जनता की गाड़ी का खयाल उस में सकता है । ऊपर जो सूचनाएँ दी गई हैं वे उपशिथि त न आने दे । इसलिये खास खास योगिता की दृष्टि से साधारण सूचनाएँ हैं, निश्चित श्रेणियों की प्रतिज्ञा वह जनता के सामने ले। विधान नहीं । जनता को भी उसके श्रेणी-ग्रहण से व्यवहार जनता चाहे तो पिछली दस श्रेणियों का करने में सुभीता हो सकता है। उपाधि के रूप में उपयोग हो सकता है। सद्दृष्टि की तो साधारण सूचना काफ़ी है। अपनी दृढ़ इच्छ', विवेक, स्वपर-कल्याण
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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