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________________ कल्याणपथ [ ४२० ण लेना पड़े चित्त में व्याकुलता हो, यह बात पर नहीं पड़ने दिया जात।' होना चाहिये । १० न्याय----आचार विचार की बात का • लैंङ्गिक इन्द्रिय और जीभ को वश में कर निष्पक्षतापूर्वक मनायोग लगाकर निर्णय करना ने पर दम का अभ्यास आधे से बहुत ज्यादह न्याय है । न्याय को दबाने से लोगों में घृणा, [ जाता है | रह जाती है अन्य इदियों को अविश्वास, और किसी भी दूसरे उपाय से अधिक श में रखने की बात, सो उन्हें भी वश में पवन से अधिक बदला लेने की भावना पैंदा होती है। की कोशिश करना चाहिये। सभ्यता और असभ्यता की अच्छी पहिचान यही संगीत से या सौन्दर्य से लुभाकर लोग सर्वस्व है कि जो शक्ति के आगे झुकना नापसन्द करते हैं मा बैठते हैं, अनुचित कृत्य कर बैठते हैं, सत्य का वे सभ्य है, जो शक्ति के आगे झुकना पसन्द पमान और असत्यका आदर कर बैठते हैं । इन करते हों वे असभ्य है । बहुत से लोग या जनब अनर्थो से बचने के लिये सभी इन्द्रियों को समुह ऐसे होते हैं जो कहते हैं कि हम बहादरों श में रखने का अभ्यास करना चाहिये । की इज्जत करते हैं और बहादुर वे उसे कहते हैं ९शम-शान्ति गम्भीरता अनुद्वेग आदि जो अपना शक्ति स दनिया को उत्पीडित करते तो शम कहते हैं । बहुत लोग बहुत जल्दी हो । सभ्य भी वे उन्हें ही कहते हैं जो दुसरे भावेश में आजाते हैं क्रोध और अभिमान के लोगों को, दूसरे मुल्का को नष्ट कर सकते हो। गरण उनका पारा और ऊँचा चढ जाता है इस इस प्रकार उत्पीड़न में ही बहादुरी और सभ्यता । वे बहुत अनुचित बातें बक जाते हैं या वहत मानने लगते है। ऐसे ही लोग हैं जो इस दनिया अनुचित कार्य कर जाते हैं यह उइंडता शम से को नरक का नमुना बना डालते हैं । शक्ति की र करना चाहिये । शम एक तरह की ठंडी सदा आवश्यकता है पर उसका उपयोग न्याय क्ति है जो मनुष्य को बड़ी बड़ी चोटों का भी की रक्षा के लिये, मानवजाति के संकटों को दूर सामना करने योग्य बनादेती है। शम न होने करने के लिये, सुखसाधनों को बढ़ाने के लिये र मनुष्य बहुत दुःखी होता है और दूसरों को होना चाहिये । शाक्त थोड़ी ही क्यों न हो पर :खी कर जाता है । पीछे पश्चाताप भी हो तो अगर उसका उपयोग न्याय के ही मार्ग में हो तो । लोग उससे डरते रहते हैं कि न जाने किस उस थोड़ी शक्ति से भी सभ्यता और बहादुरी का के पर यह क्या कर बैठे या क्या कह बैठे। पूरा परिचय मिल सकता है, और काफ़ी जनसलिये अपने आवेगों को वश में रखने की शक्ति कल्याण हो सकता है । न्याय की उपेक्षा करके दा करना चाहिये नहीं तो हमाग जीवन जो शक्ति होगी वह जितनी ही अधिक होगी भ्य समाज में रहने लायक न रहेगा। उतना ही बड़ा नरक दुनिया में बनायेगी । ____शम का अर्थ छल नहीं है । धोका देने के सुखशान्ति के लिये, मानवता के विकास के लिये, ध्ये शान्ति बताना शम नहीं कहा जा सकता । सुखशान्ति बढ़ाने के लिये, पाप के विषैले अंकुरों इ ते मायाचार है । शम' में तो उद्धेगों को को या विषवृक्षों को उखाड़ने के लिये न्याय-धर्म न्ति रखा जाता है और उनका दुष्प्रभाव मन बहुत जरूरी है ।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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