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________________ सल्यामृत [४२१ हम अपने कुटुम्य में न्याय का परिचय दें इसी तरह अर्थघात के भी तेरह भेद हैं तो हमारा कुटुम्ब संगठित सन्तुष्ट और सुखी हो,। इनमें भी व्रती मनुष्य बाधक तक्षक भक्षक का मुहल्ले और नगर में न्याय का परिचय दं ना त्याग करता है अविवेकज प्रभादज से बचने की मुहल्ले और नगर का हर एक आदमी बडी निर्भ- यथाशक्य के शिश करता है। यता से रह सके और मनुष्य की रक्षण सम्बन्धी चोगे के चौबीस भेद बताये गये हैं उनमें चिन्ता आधी से भी कम रहजाय, साम्प्रदायिक से वह धनका नजर चोर, टग चार, उद्घाटक और जातीय कलहका अन्त हो जाय। चौर, बलात् चोर, घातक चोर कभी न बनेगा। जिस क्षेत्र में भी हम न्याय का परिचय छन्न चोरियों में कभी कभी कुछ दोष लग सकता है दंगे उसी क्षेत्र में सहयोग प्रेम निर्भपता विश्वास पर वह इनसे बचने की कोशिश करेगा। नामआदि पैदा होगा । जनता का सच्चा नेता वही हो चोरी उपकार-चोरी उपयोग-चोरी में भी वह नजर सकता है जो न्याय की मूर्ति हो । हर तरह के चोर, ठगचोर, उद्घाटक चोर, बलात् चोर, और सामाजिक जीवन के लिये न्याय धर्म आवश्यक घातक चोर कभी न बनेगा । इनकी छन्न चोरियों में यथाशक्य परहेज रखेगा। जो इन दस धी का अधिक से अधिक दुमी प्रकार वह विश्वासघात या झूठ बोलने अभ्यास करता है अर्थात उन्हें जीवन में उतारने का भी त्यागी होगा । वह बाधक अतथ्य, तक्षक की कोशिश करता है वह ता री श्रेणी वाला इन अतथ्य और भक्षक अतथ्य न बोलेगा । अविवेकज धों में पूर्णता तो नहीं पासकता पर कुछ और प्रमादज से बचने की यथाशक्य कोशिश विशेषता अवश्य पासकता है। इन धर्मों के करेगा । वह शुद्ध और शोधक तथ्य बोलेगा पर अभ्यास से उस में संयम को पालन करने की प्रमादज राहस्थिक निन्दक और पापोत्तेजक से योग्यता आज त है। बचने की कोशिश करेगा। ४ व्रती ___ इस प्रकार जो प्राणरक्षकवती, - जो प्राणघात अर्थघात और विश्वासघात अचौर्यव्रती (ईमानदार) और सत्यवादी बनता है इन तीन पापों का त्यागी है वह बनी है। इन वह चौथी श्रेणीवाला अर्थात व्रती है। पापों का विवेचन विस्तार से किया गया है। ५ मील प्राणघात तेरह प्रकार का बतलाया था। सभी जो व्यभिचार से दूर रहता है वह मशील तरह का प्राणघात पाप रूप नहीं है। साधक है । व्यभिचार के कई रूप तो ऐसे हैं जिन्हें वर्धक न्यायरक्षक सहज भागयज भ्रमज आरम्भज सुशील होने के पहिले ही छोड़ देना चाहिये। स्वरक्षक इनका त्याग जरूरी नहीं है। प्रमोदज वलात्कार घोर हिंसा है प्राणघात है, परस्त्रीगमन अपबाद रूप में कभी हो सकता है पर उससे भी चोरी है इसका त्याग तो व्रती होने पर या बचने की पूरी कोशिश करना चाहिये । बाकी अभ्यासी होने पर ही कर देना चाहिये बल्कि अविवेकज बाधक तक्षक और भक्षक घात का बलात्कार पाप तो ऐसा है जो साधारण नागरिक त्याग करना जरूरी है। भी नहीं कर सकता इसलिये जो सदृष्टि है वह
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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