SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५९ ] भत्यामृत राष्ट्र अपने हाथ में लेले, इसी प्रकार प्रमति वगैरह इसालय दुध रक्त की तरह अभक्ष्य नहीं है, इसकी व्यवस्था भी राष्ट्र अर्थात् सरकार कर लिये दूध पीना प्राणघात में शामिल न होगा । और विवाह की प्रथा उठा दी जाय तो व्यभिचार व लिया जाता है जानवर के पालन पोषण के कहने लायक किसी दोष को जगह न रह जायगी बदले में, इसलिये वह अर्थधात भी नहीं है। हां फिर भी विवाह में जो शान्ति है उतनी न मिटेगी निर्दयता से दध निकाला जाय, बछड़े को न यों तो कुछ गुण दोष दोनों तरफ रहेंगे पर गुणों दिया जाय तो अवश्य इस में पाप है । पारणतः का टोटल लिग के पक्ष में ही अधिक दबदमाग नहीं है। उपादान कारणों की एकता से भक्ष्य अभक्ष्य खैर, इस प्रकरण का सार यह है कि यभि- का सम्बन्ध नहीं है उसका सम्बन्ध हे प्राणिया चार के पाप से तो मनुष्य को बचना ही चाहिये बात अचात म । रक्त में वन हेता है दूध में वह तो पुरा विश्वासकार और चोरी है साथ ही नहीं होता इमलिय रक्त अभक्ष्य है, दुध भक्ष्य है। व्यभिचार के उपपाप, if वेश्यागमन प्रश्न-. जानवंग के बालों का उपयोग अप्रमाणित सहचर गमन से भी बचना चाहिये। करना या मानी का उपयोग करना दुभाग ह या नहीं ! ये दुर्भोग हैं इसलिये उपपाप है । उना : ऊन का उपयोग दुर्भोग २--मान-नाण- दुर्भोग है मांसभक्षण। नहीं है, परन्तु जो बाल प्राणियों को मारकर किसी चलते फिरते प्राणी के शरीर का भक्षण निकाले जात हो उनका उपयोग करना दुर्भोग है । मांस भक्षण है। पुराने समय में वनस्पतियों के इमी न मान का उपयोग करना मी दोंग है शरीर को भी मांस आदि शब्द से कहते थे । क्योकि वर भी प्राणियों को मारकर निकाला आम आदि की गुठली को अस्थि, उसके दल को मांस उसके रेशों को सिरा, छाल को त्वम् ( स्वक् तो आज भी कहते हैं ) कहते थे कहीं कहीं प्रश्न- यह तो पूरा प्राणघात है इसे दुर्भोग साधारण भोजन को भी मांस कहा है। पर या कम पाहा ! पाप कहना चाहिये न कि उपपाप । वनस्पति शार को नहीं किन्तु पशु पक्षी आदि उत्तर- प्राणघात में जो करता है वह दुग चलते फिरते प्राणियों के शरीर से मतलब है। म नहीं है। बहुत से लोगो को दुर्भोग के कारण भोजन के लिये इन के मांस हड्डी चमडा नस का पता भी नहीं रहता । मोती पहिनने वाले खून का उपयोग न करना चाहिये। बहुत में व्यक्ति नहीं समझते कि मोती में किस प्रश्न- दूध भी शरीर का भाग है और प्रकार प्राणिहत्या होती है। उसकी तरफ ध्यान उसमें प्रायः वे ही तत्व हैं जो स्युन में है तब दूध दिये बिना माती कस्तुरी आदि चीजों का उपयोग भी भोजन के काम में न लेना चाहिये। हुआ करता है। दूसरी बात यह है कि अपने उकार--दृश्य शरीर का ऐमा भाग है जिसे आप मरने पर भी मोती आदि प्राणी में से निक निकालना ही पढ़ना है उसके निकलने से कष्ट जा सकते है इनलिये भी लोग उन का उपयोग नहीं होना न दाहिर की खास हानि होती है, करते हैं।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy