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________________ भगवनी के उपांग मोती आदि दुर्भोग अवश्य है इनका उपयाग ........: क्षन्तव्य है, यद्यपि क्षन्तव्य होच न करना चाहिये फिर भी मरीम्बा भी इस उपाप में गिनना पडेगा। दुर्भोग नहीं है। मा में इसकी अपेक्षाभी चीज जब बाजार में मनोवृति अधिक पिन होती है।। होती है और खरीदने वाले अधिक होते हैं । प्रकृतिने मनुष्य को मांस-भक्षी नहीं बनाया है। वामहंगी दी जाती है। माद के लिये म मांस-भक्षी प्राणियों के दान और नव जैम होते स्वानेवाले अधिक इसलिंग पड़ा मांस महंगा है वैसे मनुष्य के नहीं होने । मनस्यती बन्दर परन्तु यदि आपकी बात मानकर लोग मांस खा की तरह है। मनध्यने अपनी पति छोड दें नो काम किम काम जायगा वह सस का दुरुपयोग करक. ....... को अपना लिया हो जायगा ! मम्ता होने पर क्या आप मा है। इसमे एक तरह की ना जाना है। भक्षण का उपपाप करेंगे। मनुष्य में बुद्धि जितनी अधिक है उतनी उत्तर -- याद ..... न हो कि अधिक सम्ख-दुसरो की शक्ति नहीं है अथवा विवश के कारण पेट भरने का विचार हो अधिक होने पर भी बहुत अधिक नहीं है. ....... उत्पार है। यही कारण है। में ... दामपत्य, कलाना, दर के प्रकरण में उसका उल्लेख किया गया। भय, उल्लाम आदि सब बात कय करीव माय जिन देशों में अन्न की कमी है वहां भी मां मर्गवीं पाई जाती है, उनके प्राण हमारी क्षण उपाय है। बाद के लिये लेलें यह कामी निर्दयता कही के दोष को मनुष्य क्या की जामकती है। जहां पूरा अन्न नहीं होता वही मनुष्य मांस प्रश्न- बहुत से लोग स्वाद के लिये माम- बाये तो क्या खाये ! यहाँ उसे उपपापी भी। भक्षण नहीं करते पेट भरने के लिये मांसभक्षण करना चाहिये। करते हैं? क्या यह उनकी मिद यता है ? अथवा उकार ...... म दुःखवृद्धि होती क्या यह क्षम्य नहीं है। इमटिये बह किसी न किसी अमापन उत्तर-30 सरीखे मुल्क में मामखाना ही. परिस्थिति ने उसे विवश किया है इस स्वाद के लिये ही है, यहां अन्न इतना सस्ता है उसे पापीन कहा जाप उपपानी कहा जाय इस किमांस मछली आदि के लिये उससे की गणे हीरियायत होमकती है। सर्प के मुंह में। दाम खर्च करना पढते हैं इसलिये जो लोग यहां है इसमें उसका कोई अपराध नहीं, फिर मांस खाने है वे पेट भरने के लिये खाते हैं यह दःखबर्धक होने से वह माग जाता है, शेर । नहीं कहा जा सकता । जिन देशों में अन्न की खाता है इसमें उसका कोई अपराध नहीं, वि अपेक्षा मांस महंगा है वहां .....: उपपाप हार होने से यह मारणीय है ।। नहीं है पाप है, हिंसा अधील प्राणघान है। जहां कोई कार्य दुःखद है तो उसे बुराई में गि मांस अन्न से सस्ता है, वहां यह उपपाय । पडेगा भले ही परिस्थिति के अनुसार हम जहां अन्न करीब करीब मिलता ही नहीं है, वहां पाप या उपपाप कुछ भी करें !
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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