SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५५] सत्यामृत नहीं थी अथवा विवाह बन्धन काफी शिथिल खैर, बात यह है कि वेश्या--संस्था होना और क्षणिक होते तो भी इसे वेश्याओं की जरू- समाज के लिये शोभा की बात तो नहीं है सुख रत न होती पर विवाह की शिथिलता से कौटु- शान्ति की दृष्टि से भी यह आदर्श व्यवस्था नहीं म्बिकता नष्ट हो जाती इसलिये लिह-बन्धन की कही जा सकती, पर शोभा की हो या अशोभा दृढ़ता तो अनावश्यक है । अब तो यही कहा की, आदर्श हो या अनादर्श, जब तक समाज जा सकता है कि कामे माद जैसा शिथिल होता इस जमरन को पूरा करने का कोई दूसरा अच्छा जायगा उसी प्रकार वेश्याओं की जरूरत कम रास्ता नहीं निकाल पाया है और कानून के होती जायगी। द्वारा उसने वेश्या वृत्ति का समर्थन किया है तब समाज में वेश्याएं न रहें यह सब से अच्छी तक वेश्या अपनी वृत्ति के कारण पापिनी नहीं बात है पर इस अच्छे की अच्छाई तभी ठीक कही जा सकती। जब समाज में वेश्याओं की जरूरत न रहे । बेश्या को अपकिन कहा है क्योंकि जिस प्रायः सभी युवक युवतियां विवाहित हों, अविवा उद्देश को लेकर वेयः-संस्था को समाज के द्वारा हित अर्थात् असहचर हों तो वयस्क लोग हों या अनुमति मिली थी उस उद्देश का दुरुपयोग वेश्याओं कोई खास तरह के माधक तोगार के द्वारा होता है । वे विवाहित पुरुषों को भी अमरतन होगी। अपने सम्पर्क में लेती हैं इस प्रकार दाम्पत्य को प्रश्न-असहचर पुरुषों के लिये तो वेश्यामों धक्का पहुंचाती हैं । इस दृष्टि से समाज को की जरूरत हुई पर असहचर नारियों को वेश्या वेश्याओं की जरूरत नहीं है । विवाहित पुरुष तो सरीखी किसी पुरुष संस्था की जरूरत क्यों नहीं येया-मेवन से पूरे व्यभिचारी बनते ही है पर हुई ! अगर बिना किसी ऐसी संस्था के असहचर जीविकः की ओट में वेश्याएँ भी व्यभिचारिणी नारियो का काम चल गया तो असहचर पुरुषों बनती है, इसदिने वेश्या को उपपापिन, कहा का काम क्यों नहीं चल सकता ! है । उसके लिये यह ममा जानुमोदित पाप है, उसकी जीविका ऐसी है कि विवाहित सम्पर्क से उत्तर-नर और नारी की शरीर रचना नया बचना उस के लिये कुछ कठिनसा है इसलिये उसके आधार से बनी हुई मनोवृत्ति के कारण इसे उपपाप कहा गया है । अगर कोई वेश्या यह नारी उस प्रकार आक्रमणशीटा नहीं है जैसा प्रतिज्ञा लेले कि मैं विवाहित पुरुष को अपने पुरुष है । इस विषय में नारीको पुरुष के आक्रमण ___ सम्पर्क में न आने दंगी तो वह शीलवती कही से बचाने की जितनी जरूरत है उतनी पुरुष को जा सकती है । इस प्रकार व्यभिचारहीन वेश्यानारी के आक्रमण से बचाने की नहीं है । मूल न उनकी जीविका ही कहलायगी, पाप या कारण तो यही है जिससे असहचर नारी के लिये उपपाप नहीं । हो सकता है कि कोई विवाहित बझ्या सरीखी किसी संस्था के बनाने की जरूरत उसे धोखा हे जाय पर उसे जानबूझकर आँख नहीं पड़ी। दूसरा कारण सामाजिक है । आर्थिक बन्द न करना चाहिये यथाशक्ति सच्चे दिल से सूत्र पुरुष के हाथ में होने से नारी ऐसी या जाँच करलेना चाहिये तब उसका कोई अपराध न का उपयोग नहीं कर सकती थी। होगा वह शीलवती कहला सकेगी।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy