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________________ भगानी अंग - सकते हैं पर उनमें पाप की पर्वाह नहीं है, अपवा समाज का कोई ऐसा दोष हो जिसस वह कथाकार या प्र कार का विषय नहीं है। समाज के लिये दु:खकर कार्य भी व्यक्ति के यह तो इतिहासमा निक निकालिये सुखकर रूप में मफल बन जाता है, तो ७-किसी पुण्य को दुःखान्त बताया इम समाजदोष की तरफ ध्यान दिलाने से यह जाय पर उस दुःख का कारण न तो व्यक्ति का छट्टे वर्ग का हो जायगा पन्त न तो समाज दोष बताया जायन '. यह सानीं श्रणी का दोष बताया जायन व्यक्ति के गुण की तरफ है जो कि सत्य हान भी है और तथ्यहीन भी है। इशारा किया जाय और फिर पाप को सुखान्त य .. ३' जीवन भी जगत् में दःखान्त बनाया जाय नी यह नेक है असत्य है देख जाता है पर वह सामूहिक रूप में मुखान और अतथ्य भी है । सामूहिक रूपसे जो सुखसे होताहे यह बात न भरना चाहिये। अगर अधिक दुःख दे वही तो पाप है इस पापको वह सामूक रूप में सुखान्त नदी तो उसके सुखान्त बताना नप और सत्य दोनों का विद्रोह मूल में कोई काम किन चाहिये जिसमें करना है। वह वर्ग अका। अगर काई मामा ९-१०- , घटनाए. सुखान्त जिक दोष नहीं है तो व्यक्तिगत दोयना भी होती है और दुःखान्त भी। एक आदमी चाहिये जिससे सीमर वर्ग में आ जाय। मामा- धर्मात्मा था पर मकान पर बिजली गिरी इससे जिक या व्यक्तिगत कार भी दोष न और दबकर मर गया; एक आदमी पापी था, भूकम्प पण्य जीवन दुःखान्त हो जाय -यह बात तय हुआ जमीन फटी उस मे वह नीचे गया पर हीन है और सत्यहीन तो है ही। इस प्रकार के दूसरे ही क्षण दुसरा कम्प आया वह आदमी चित्रण मन को पृण्य से लार्वाह बनाकर अन्त नीचे से उछलकर फिर ऊपर आगया, बच गया, में नजर देते है। के नाम पर इस प्रकार माधवर मुखान्त दुःखान्त घटनाएँ भी इ.का चित्रण नहीं किया जा सकता । वास्तव इतिहास लेखक या समाचारबाहकों के विषय है। में ये स्वाभाविक है भी नहीं। कथाकार को इन का उपयोग सन्देश देने के ८-पाप को सुखप्रद चित्रित करना टियन करना चाहिये और अगर भोले लोगों के आठवाँ वर्ग है। यह भी सातवे वर्ग की साह दिल पर प्रभाव डालने के लिये करना भी पडे तथ्याविरुद्ध और समविरद है। जीवन में पापी तो इस प्रकार करन! चाहिये कि पहिले या दुसरे का जीवन भी मुक देखा जाता है उसके वर्ग में उन्हें शामिल किया जासके । भीतर सामूहिक दुःख रहता है। इसलिये सामूहिक इस प्रकार चरित्रनित्रा के लिये दस वर्ग रूप में वह दुःखान्त ही कहा जा सकता है। बनाकर विवेचन करने से ने तथ्य का अथवा उस व्यक्ति में कोई गुण ऐसा जबर्दस्त वास्तविक रूप समझ में ने होता है जिससे उस का जीवन सुखान्त हो से बचने के लिये कला की हत्या करना पड़ेगी जाता उ नकी तरफ अगर ध्यान दिलाया या तथ्य पर उपेक्षा करना पड़ेगी । जाय तो वह चित्रा वर्ग का हो जायगा। को नष्ट करना पड़ेगा ऐसी कोई बात नहीं है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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