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________________ ३४७ ] न देख पाये । इसमें उनका नहीं समाज का अपराध था ऐसे महात्माओं के दुःखान्त चरित्र में समाज के दोषों पर ही मुख्यता से प्रकाश डाला है जाता 1 सत्यामृत इस वर्ग में महात्मा ईसा सरखे महान् व्यक्ति ही आते हैं सो बात नहीं है किन्तु समाज की चक्की में पिन-पिसकर जिन जिन छोटे बड़े व्यक्तियों का बलिदान हो जाता है वे सब आते हैं, उनकी उस विषय में निरपराधता ही पुण्य है जिसकी निष्फलता के कारण उनका चरित्र पांचवें वर्ग में आ जाता है । समाज के अत्याचार से पीड़ित कोई विधवा आत्महत्या करले तो इस समाजदोष का प्रदर्शन भी इसी वर्ग में आ सकता है। इस वर्ग में समाजदोष की मुख्यता 1 ६ - इस वर्ग में वे चरित्र जाते हैं जो समाज के दोष के कारण पापपूर्ण होनेपर भी सुखान्त होते हैं । यह भी सकता है कि उस सुखान्तता का कारण व्यक्ति के कोई असाधारण गुण हो । सो अगर उन गुणों पर प्रकाश डालने का लेखक का विचार हो तो वह चौथे वर्ग का अर्थात् व्यक्तिगुणप्रधान पापचरित्र कहलायेगा । पर अगर लेखक का विचार व्यक्ति के गुण दिखाने का नहीं है, उसके तो इ पाप ही दिखाना चाहता है फिर भी जगत की घटनाओं को देखकर उस पाप को सुखान्त बताता है तो इस जगह उसे समाज के किसी दोष पर प्रकाश ढाउना चाहिये जिससे पाप भी सुखान्त हो सके । पाप कहते ही उसे हैं जो विश्व में सुख की अपेक्षा दुःख अधिक बढ़ानेवाला जो कार्य पाप है वह आगे पीछे विवर्धन करने बाला तो होगा ही, फिर भी स्कूल रूपमें जो बह सुखान्त मालूम हुआ उनका कारण ढूँढ़कर बताना लेखक का काम है जिससे सुखान्त दिखनेवाला पाप दुनिया से दूर हो | दुराचारी, ढोंगी, दुःस्वार्थी, धर्मगुरु, नेता आदि समाज की छाती पर तागड़धिन्ना करते हुए भी सफल देखे जाते हैं वे अपने ही समान अन्य स्वार्थियों को इकट्ठा कर लेते हैं इस पाप की पीढ़ियाँ तक सुखान्त देखी जाती हैं पर दूसरी तरफ इनसे समाज की हानि देखी जाती है इसका कारण होता है - समाज का अविवेक, अपरीक्षकता आदि । इसकी तरफ ध्यान दिलाने से पापी जीवन को सुखान्त दिखाने में भी बुराई नहीं है । इन छ वर्गों के कथानक ऐसे हैं कि इनमें से किसी भी वर्ग का कथानक लेखक चुन सकता है फिर भी सत्य का विरोधी नहीं होता । जो लोग तथ्य को मुख्यता देना चाहते हों और दुःखान्त लिखना ही पसन्द करते हों और भले आदमियों को भी दुःखान्त चित्रित करना चाहते हों वे भी तीसरे व्यक्तिदोषप्रधान पुण्यचरित्र और पांचवें समाजदोषप्रधान व्यक्ति पुण्य वर्ग के चरित्र लिख सकते हैं इनमें तथ्य का भी निर्वाह है और सत्य का भी इनको पापोत्तेजक तथ्य नहीं कह सकते । कला कला के लिये है, येह कहने वालों को इन छः वर्गों में अपनी कला का विहार कराने के के लिये इतनी गुंजायश है कि उनकी कला किसी की पर्वाह किये बिना काफी विहार कर सकती | कला की स्वतन्त्रना में भी बाधा न आयगी न तथ्य का विरोध होगा न सत्य का । आगे के जो वर्ग हैं उनमें से सातवें आठवें वर्ग का उपयोग किसी लेखक को न करना चाहिये, वे पापोत्तेजक हैं, और तथ्यहीन भी हैं। नव दसवें वर्ग भी पापोत्तेजक हो
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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