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________________ भगवती के अंग ३४४ प्रश्न--देश में ऐसे भी साधु हुए हैं जो निन्दक तथ्य है। पापियों के रहस्य के विषय में भी मौन रखते थे बहुत से लोग अपनी निन्दकता छिपाने के बिलकुल वीतराग थे, उनका कार्य हितकर था या लिये कहने ... किसी की आपसी अहितकर ! नहीं करते साफ बात कहते हैं किसी को बुरा लगे उना- लोग भगवती की विशेष साधना तो भले ही लो आदि । पर ऐसे लोगों को याद करते हैं या जिनकी सेवाएं विशेष क्षेत्र में रखना चाहिये कि का चापलसी से के कारण परिमित हैं या जिनके सिर पर कोई विरोध है इसका अर्थ निट से महयोग नहीं एक जिम्मेदारी एसी है कि अगर वे साधारण मार्ग है । स्पष्टवादी होने के लिये इस बात का विचार से चलें तो वे अपनी .. न कर सकेंगे, जारी है कि तुम्हारा वक्तव्य जनहित के लिये उनको अपना जीवन विशेष रूपमे मयदिन बनाना जरूरी हो या उस आदमी के हित के दिन पड़ता है। अगर टाकू भी उनके ऊपर विश्वास हा जिसके विषय में तुम स्पष्टवादी बने हो। कर सके कि ये हमारा भी रहस्य दुनिया में प्रगट अपना बहमन बघारने के लिये और इसके लिये न करेंगे तो डाकुओं के मन में यह श्रद्धा किसी दूसरों के मामली दोषों को बढा बढ़ा कर कहने दिन उन मुनियों के द्वारा डाकुओं का कल्याण के लिये नह।। करा सकती है। इसलिये वीतरागता का वह र किसी व्यक्ति के या समाज के सुधार के भी किसी किसी के लिये कभी कभी उपयोगी हो लिये जो जाती है वह सकता है। पर यहां तो रहस्य प्रगट न करने शोधक तध्य है। शोधक तथ्य सत्य है वालों का विचार नहीं करना है किन्न रहस्य निन्दक तथ्य असत्य है। प्रगट करनेवाले का यह विचार करना है पापोचेजक म बात कहना जो कि कोई आदमी निस्वार्थ भाव से या घटना की दृष्टि से तो समान होती हो पर न्याय की रक्षा के लिये किसी का रहस्य प्रगट उसका पमित्र अर्थात् कन्यापन हो कर दे तो वह कैसा है। जो भगवती की जैसे-चारी जवा आदि से कोई आदमी धनी बन विशेष साधना के लिये पापियों का भी रहस्य गया तो इसका इस दंग से उल्लेख करना कि वह प्रगट नहीं करते उनका विचार साधना के अनुसार मालूम हो तो यह बात सेनेजर किया जाना चाहिये। राहस्यिक तथ्य के विषय में तथ्य है इससे पाप को उत्तेजना मिलती है। तो यह मान, सईये कि परिस्थिति आदि के अनु- प्रश्न-जगत में अगर पापा सार पापियों का रहस्य प्रगट न करना क्षन्तव्य हो देकर सफल होता है तो उसका उल्लेलम्ब न करने सकता है। से कैसे चलेगा ! हमारे आँख बन्द कर लेने से निन्दकन...बान में सचाई हो पर उसके जैसे दुनिया मिट नहीं जाती उसी प्रकार पाप की कहने का मतलब न तो सचाई हो, न विश्व- सफलता का उल्लेख न करने से पार की सफलता अ. , किन्तु दूसरे को नीचा दिखाना, मिट न जायगी। पाप इस प्रकार सफर क्या होता एक ढंग से अपने घमंड की पजा करना हो वह है इसका पता लगाने के लिये कम से कम पाप
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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