SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४५ ] की सफलता का उल्लेख जरूरी है। उत्तर- प की वह सफलता क्यों होती है। और उसे कैसे रोका जा सकता है इत्यादि विचार के लिये पाप की सफलता सूचक घटनाओं का उल्लेख पाक तय नहीं है क्योंकि इससे पाप को उत्तेजना नहीं मिलती। इसमें तो पाप की उस सफलता को रोकने के लिये उनका उपाय ढूँढ़ने के लिये इशारा किया जाता है । सत्यामृत प्रश्न- घटना का परिणाम कुछ भी हो पर समाचार पत्र आदि का काम है कि वे घटना को ज्यों का त्यों प्रकाश में लायें। हो सकता है कि जिससे हम बुरा परिणाम समझते हों उससे अच्छा परिणाम निकले । उत्तर- समाचार पत्रों का सम्बन्ध जहां तक समाचारों से है वहां तक उन्हें शुद्ध तथ्य ही प्रगट करना चाहिये। जब वे उपदेशक के रूप में काम करें तब उन्हें खयाल रखना चाहिये कि उनका तथ्य शोधक हो पापोत्तेजक तथ्य नहीं । प्रश्न- बहुत से विद्वानों का मत है कि कला कला के लिये है। इसलिये वे अपने कथा साहित्य में परिणाम पर विचार नहीं करते वस्तुस्थिति पर विचार करते हैं । उनका कहना है कि दुनिया मेंस की ही विजय नहीं होती असत्य की भी होती है नाकिता के विषय में उपेक्षा क्यों करें और एक निश्चित लकीर पर ही चल कर पाठकों की उत्सुकता पहिले नष्ट करके मजा किरकिरा क्यों करदें ? हम सत्यासत्य की पर्वाह किये बिना कला की ही उपासना क्यों न करें ! उत्तर- सय पर जगत स्थिर है इसलिये का को स्थिर रहने के लिये सत्य के यहां स्थान न होगा ऐसी बात नहीं है । कला को विकला विरुद्ध जाने की कोई जरूरत नहीं है, नाना 1 भी न चाहिये । वास्तविकता सुखान्त ही नहीं है दुःखान्त भी है । इसलिये कलाकार को सुखान्त की तरह दुःखान्त का भी चित्रण करना चाहिये । पर सुखान्त हो या दुःखान्त दोनों में ही सत्य रह सकता है रहता है । पुण्य का फल सुख और पाप का फल दु:ख, दोनों में सत्य है । कलाकार पाप या पुण्य किसी को भी नायक बनाकर दुःखान्त या सुखान्त कथा लिख सकता है। दोनों में कला के लिये स्थान है दोनों में ही सत्य हैं । I प्रश्न - पुण्य का फल सुख बताना और पाप का फल दुःख बताना, दोनों एक ही बात है । पर जीवन में तो पुण्यात्मा भी दुःखी और पापी भी सुखी देखे जाते हैं - इस तथ्य पर कलाकार क्यों उपेक्षा करे और कलाकार यदि उपेक्षा भी कर जाय तो पाठक के मन का समाधान कैसे हो, तथ्य पर प्रकाश न डालने के कारण क्या वह साहित्य पर विश्वास करना न छोड़ देगा ! उत्तर - पुण्य या पाप किसी काम का नाम नहीं है जो काम जनहित या विश्वहित के लिये उपयोगी है वह पुण्य है, जो इसके विरुद्ध है वह पाप है। जिसे हमने पुण्य कहा है उससे अगर दुःख मिलता है तो यह सोचना चाहिये कि ऐसा हुआ क्यों ? सुखकर ही तो पुण्य है फिर पुण्य दुःखान्त कैसे हुआ ! यहां अवश्य ही ऐसी बात मिलेगी जिसके विषय में हमें भ्रम हुआ है ? अधिकतर होता यह है कि जब सदाचार साथ में विवेक नहीं होता तब भावना अच्छी होने पर भी समझदारी न होने से पुण्य भी दुःखद जाता है, अर्थात् जो कार्य साधारण रूप में जनहित के लिये है, वह देशकाल का विचार न करने से अहित के लिये हो जाता है । पुण्य को
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy