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________________ ३४३ सत्यामृत पात्र-प्रेम से हम ऐसा समाचार कहते है जो पात्र को प्रिय या आवश्यक माह होता है, मलको प्रिय होगा या न होगा इसका विचार नहीं करते, इसमें मूल की अपेक्षा पात्र से प्रेम अधिक होता है। सहज उत्तर में जहाँ तक उभयप्रेमी बना जाय यहाँ तक अच्छा है। इस प्रकार तथ्य बोलने पहिली विचारसय उना की है । ख- दूसरी बात हिताहित की है। ऐसी श्रीनर से उधर कहो जिससे दुनिया को कुछ लाभ पहुँचता हो या हानि की अपेक्षा लाभ अधिक होता हो । ग- तीसरी बात है--बान का पुरापन | अधूरा तथ्य कभी कभी झूट से भी भयंकर होता है इसलिये जो बात कहो वह ऐसी कहो जिससे उसके जरूरी जरूरी सभी पहलु प्रगट हो जॉय | सुननेवाले को कोई भ्रम पैदा न हो जय । जैसे मानो मैंने किसी आदमी के विषय में कहा कि उसकी यहाँ जरूरत नहीं है क्यों कि यहाँ तो किसी तरह काम चलता ही है पर अमुक जगह बहुत जरूरत है इसलिये उसको वहाँ ही रहना चाहिये । तुमने उस आदमी से जाकर कह दिया कि वे (मैं) कहते थे कि तुम्हारी ( उसकी ) वहाँ जरूरत नहीं है। पूरी बात न कही कि क्यों जरूरत नहीं है ! उसने समझा कि मुझे नालायक समझा जा रहा है । इससे उसके मन में क्षोभ हुआ, और आदि। यह बात के अधूरेपन का फल था। बात के अधूरेपन से कभी कभी बड़े बड़े अनर्थ हो जाया करते हैं । इन तीनों बातो का विचार करके उधर समाचार ले जाना या पहुँचाना चाहिये अन्यथा चुप रहना चाहिये बात ने की आद डालना चाहिये, नहीं तो यह प्रमादज तथ्य होगा जो कि बहुत हानिकर है । ४ रायिक तथ्य - किसी के न्यायोचित गुप्त रहस्य को जानझकर करना राहस्थिकतथ्य है जोकि अनुचित है इसलिये असत्य है । में भी रहस्य की बात प्रगट हो जाती है पर उसमें प्रसाद या लापर्वाही की मुख्यता है | राहस्थिक में द्वेष या कपाय की मुख्यता है । प्रश्न- अगर दूर के दुराचार का भंडाफोड़ न किया जाय तो जगत में पाप का तांडव होने लगे पर राहास्थिक अतथ्य को आप अस या अनुचित कहते हैं, तब दुराचारियों से समाज की रक्षा कैसे की जाय ! उत्तर- न्यायोचित रहस्य को प्रगट करने की मनाई है जो गुम रहस्य अनुचित है, जिसके अप्रगट रहने में जगन की हानि अथवा अन्याय या पाप के फैलने की आशंका है या उसी के पतन की आशंका है-वह रहस्य प्रगट किया जा सकता | अगर कोई डाकुओं का दल कहीं आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है और हमें इस बात का पता है तो वह रहस्य प्रगट कर देना और डाँकुओ को असफल बना देना उचित है। कोई आदमी जाली सिक्के या नोट बनाकर जनता को परेशान करता है तो उसका रहस्य प्रगट कर देना भी उचित है। कोई आदमी चुपचाप की या परहल्या की चोरी करने की या व्यभिचार करने की तैयारी कर रहा है तो उसका वह रहस्य खोल देना और उसके पाप बना देना उचित है। इस प्रकार को दृष्टिसे रहस्य खोला जा सकता है 1
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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