SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती के अंग [ ३३६ उत्कट आमनिरीक्षण के सूचक है। उनने जो आई हुई जानकर हाथ जोड़कर देवी को शान्न जो अपने मनमें पाप देखा है वह तो मनुष्य करने लगे । देवी ने कहा-में जगदम्बा हूँ-जगत मात्र में होता है, साधारण जनें। में उससे बहुत की अम्बा, समझ : में मनुष्यों की अम्बा है तो अधिक होता है पर साधारण लोग अज्ञान और पशुओं की भी अम्बा है, पर तुम मेरे ही बेटों असंयम के कारण उसे पार ही नहीं समझते, न को मेरे ही सामने काटकर चढ़ाते हो ! तुम्हार अनुभव करते है, पर सन्त लोग सूक्ष्मदा बेटी को काटकर अगर कोई तुम्हें चढ़ाये तो नम्हें और संयमी या मोमिन होते हैं, इसलिये वे अपने कैसा लगे ! वैसा ही मुझे लगता है इसन्टिय में माधारण मानसिक विकारों को भी देखते है इस मन्दिर से चली गई। और उन्हें हटाने के लिये तड़पते हैं। यही देवी की बात से लोग घबराये । उनने कहानड़पन वे खुदा या ईश्वर के सामने या दनिया के सामने मां, तुम जैसा कढोगी मा ही होगा पर तुम पेश करते.हे । पर वास्तव में वे अपने को सब लौट आओ। से बड़ा पापी नहीं समझते हैं और समझते भी देवी ने कहा-बस एक शर्त पर में लोट हों तो होते नहीं है, इसलिये आमशुद्धि के लिये सकता हूं कि कल से तुम लोग यहां पशुबन्ति उनका यह अ पना है-पर साधक न किया करो। अनभ्यभाषण है। लोगों ने मंजर किया और पशुबलि बन्द हो सक- भाग से मनुष्य असत्य- गई । इसमें सन्देह नहीं कि इस प्रकार झुट बोलने बादी नहीं कहलाता। याना की दृष्टि से से लोगों का धर्म और पशुओं का मुख बढ़ा, यह फलसत्य भाषा है। परन्तु कभी कभी ऐसे अतथ्य हानिकर भी होते २ वर्धक--अतथ्य-वरित या विश्वहित है। न होने पर इसकी प्रतिक्रिया भी के अविरुद्ध परहित करने के लिये जो अतध्य हो सकती । साथ ही परस्पर में विश्वास भी भाषण किया जाता है वह वर्धक-अतथ्य। कम होता है। दमका निद दृष्टान्त देना कठिन है क्योंकि प्रश्न-- अगर कोई अपराधी प्राणदंड या एक जगह जो वर्धक है दूसरी जगह वह वर्धक अन्य पंड पानेवाला हो, पर हमारे झूट बोलने से नहीं रहता। अतथ्य अविश्वास पैदा करके हित बह बच सकता है। तो उसे बचाना मुम्बवर्धक होने की अपेक्षा अहित ही अधिक कर जाता है। से वर्धक अतय कि नहीं! फिर भी इसकी उपयोगिना है । जैसे-एक बार की उत्तर-- नहीं, क्योंकि यह एक घटना है कि एक जैनी भाई देवी के आगे होने- होने से अधिक दुःख पैदा करेगा । र, वाली पशुबलि रोकना चाहते थे पर उन्हें विश्वास जो अभी गाय सा मालूम होता है संकट टल जाने था कि समझाने बुझाने से लोग मानेंगे पर शेर हो जायगा । तुम्हारे सामने विनीत नहीं इसलिये उनने रात में देवी की मृत्ति छिपा दी रहने पर भी वह दूसरों के सामने गर्जेगा कि और दिन में देवी का भाव खलने लगे । लोग हमने अंक की हत्या भी की, पर किसीने मूर्ति न देखकर और उनके शरीर में देवी को मेरा क्या कर लिया ! कदाचित् वह न भी गर्ने
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy