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________________ मत्यामृत - - - तथ्य कहते हैं । सर: तथ्य और सत्य यह भी मायक-अश्य है। दोनों मिले रहे यही अच्छा है पर अपवाद रूपमें प्रश्न--अनिन्दा आदि साधना ही हो ऐसा कभी तथ्य भी असत्य हो जाता है, कभी अतथ्य नियम नहीं है। कभी कभी यह इस तरह की भी सत्य हो जाता है। जाती है कि जिससे असंयम ही प्रगट होता है फिर भी हिसा जिस प्रकार अनिवार्य है गपचार में बाधा ही पड़ती है तो क्या आत्मउस प्रकार अनिवार्य नहीं है। कुछ कुछ निन्दा होने से ही यह मारक-अनथ्य हो जायगा। प्राणवध हमारे लिये जैसा अनिवार्य है वैसा । अश्य भाषण अनिवार्य नहीं है। प्राण उत्तर--अनिन्दः आदि के अनेक मतलब बिलकुल न हो और हम एकाध दिन जीवित हो सकते है। एक आदमी इसलिये आत्मनिन्दा करता है जिससे मेग पाप छिपा रहे और जो रह यह असंभव है पर हम मौन रहकर या शिक्षा मुझे दी जाने वाली है-वह न. दी जाय अतध्यमापण किये बिना जीवित रह सकते हैं। मेरा पाप सुरक्षित रहे, ऐसा आदमी साधकइसलिये हिंसामें जैसी शान बना है वैसी अतथ्य अतथ्यभाषी नो-यापक अयापी होगा। भाषण में नहीं है। इमी प्रकार अपनी तारीफ कराने के लिये ही जो फिर भी अतथ्यभाषण जीवन में रहता है मनिन्दा आदि करता हो वह भक्षक-अतथ्यऔर बड़े बड़े महात्माओं में भी रहता है। पर हर । भाषी है। पर जो शिष्टाचार के लिय या विनय तरह का अभाग पुण्य नहीं कहा जा सकता। के लिये आत्मनिन्दा करता है वह साधक है। है । इसन्दिये जैसे प्राणाय न विचारतभेदों में इस विषय में किमी का आशय समझना कुछ रियाघारह विश्वासघात या माग कठिन तो है पर बहुत कठिन नहीं है। आशय का भी करना चाहिये । उनमें से कौन के अनुसार काका भेद समझना चाहिये। कौनसा : कितना उपयोगी है या क्षन्तव्य है और कौन कौनसा स्यागने योग्य है प्रश्न.... बहुत से संत कह गये हैं कि मुझ इगका पता ला जायगा। समान कोई पापी नहीं है, मैं सबसे बड़ा खल हूँ १.साधक अनद... विनय आदि के दुष्ट हूँ आदि । ये बात वे इसलिये कह गये। कारण अपनी झूठ। निन्दा करना या निस्वार्थ कि उनने अपने मानसिक पापों का अनभत्र विनय से दूसरे की प्रशंसा में परिमित अतथ्य किया था - अपनी दुष्टता को समझा था। उनने भाषण करना -अमर है। इससे प्रेम अपनी समझ से अतथ्य भाषण नहीं किया था. बढ़ता है, अहंकार द्वेष आदि नष्ट होता है। पर यह भी निश्चित है कि वे दुष्ट पापी आदि प्रकार व्यवहार-शुद्धि अनेनी होती है नहीं थे और सबसे बड़े दुष्ट तो कदापि नहीं थे इसीलिये यामा- है। दुनिया का तो उन्हें अध्यापक कैसे कह सक्ने है ! काम न बिगड़े, दूसरों को ३ष्ट न हो इसलिये उत्तर-- वे साधक तो है ही और उनके आने ऊपर आये हुये संकट और वेदनाएँ प्रगट उद्गार साधकता के हो सूचक है, भले ही वे न करने के लिये अतथ्य ना करना पड़े तथ्यरूप हों या अतध्यरूप । उनके उद्दार
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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