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________________ ३३७ ] सत्यामृत - पर हत्या आदि प्राणदंड के योग्य अपराध को कुछ समय बाद झूठे प्रलोभन बेअसर भी हो जाते हैं। निष्फल देखकर दूसरों के दिल से हत्या का डर अतथ्य किसी भी क्षेत्र में हो कुछ समय बाद निकल जायगा । इसलिये दंड व्यवम्मा में गड़बड़ी वह बेअसर होजाता है या इतना बेअसर होजाता पैदा करना वर्षकअनध्य नहीं है । इसमें है जितना बेअसर प्राणघात या अर्थघात नहीं अगर तुम्हारा वार्य नहीं है तो अनिये कहे, होता इसलिये अहिंसा के अपवादों की अपेक्षा अर को बचाने में अगर तुम्हारा स्वार्थ है तथ्य के अपवादों का उपयोग कम ही करना चाहिये। तो भक्षक या तक्षक है। ३ न्यायरक्षक-अतथ्य-न्यायकी रक्षा के प्रश्न-- मानलो एक अपराध ऐसा है जिसे लिये, अत्याचार से बचने बचाने के लिये जो सरकारी कानून अपराध मानता है पर वास्तव म अतथ्य भाषा किया जाता है वह न्यायरक्षकवह अपराध नहीं है। सरकार का अन्याय अतथ्य है। अतथ्य की खराबियाँ तो इसमें भी हैं रोकने के लिये वह किया गया है तो ऐसे इसलिये जहां तक बने इसका भी प्रयोग कम करना अपराधी को छिपाने में वर्ध अनय है या नहीं। चाहिये, पर ऐसे प्रसंग आ सकते हैं जब हमें उत्तर-- सरकारी कानून से मनुष्यता का रक्षक, अतथ्य बोलना पड़ता है। इसके लिये कानून बड़ा है इसलिये निस्वार्थ या निःपक्ष एकाध उदाहरण देना उपयोगी होगा। रीति से मनुष्यता के कानून की रक्षा के लिये एक सती के पीछे गुंडे पड़े हैं और वह सरकारी कानून की कमी अवहेलना करना पड़े ऐसी जगह छिप गई है या ऐसे रास्ते चली गई है तो यह उचित है । उस हालत में अ. .. जिसका हमें पता है । गुंडे हमसे पूछते हैं तो करना पड़े तो वह अर्थक अभय कहटागगा। उस समय हमारा कर्तव्य तो यह है कि हम झूठ हाँ, अतथ्य से जो हानि होनी है वह यहाँ भी न बोलकर अहिंसा से या हिंसा से उन गुंडों हो सकती है। को रोक लें । पर मानलो अपनी अशक्ति या विप___ यद्यपि आज मानव समाज इस परिस्थिति में रीत परिस्थिति के कारण हम उन्हें नहीं रोक नहीं है कि वर्षमय का बहिष्कार करके भी सकते, उनको भुलाने के सिवाय दूसरा कोई मार्ग उसके द्वारा होनेवाला वर्धन दूसरे उपाय से कर उस नारीकी रक्षा का नहीं है तो उसकी रक्षा के सके फिर भी प्रत्येक मनुष्य का यह कय लिये हम झूठ भी बोल सकते हैं-यह न्यायरक्षक होना चाहिये कि इस अतथ्य के बिना वर्धन करने अतध्य होगा। की कोशिश करे । इतने पर भी वर्धन के दिये प्रश्न-अहम मौन रहं या ऐसा गड़बड़ अनिवार्य हो उठे तो अमन पग क्षन्तव्य है। उत्तर दें कि शब्दों से झूट बोलना न कहलाव पर हां, यह बात अवश्य है कि जमाना ऐसा आता उनको कुछ समझ में न आवे तो कैसा ! जाता है कि इस अनथ्य का उपयोग कम । का उपयोग कम उत्तर--अन्नध्यभाषण की अपेक्षा यह मार्ग ही हो । जैसे झूठे प्रलोभनों से बच्चों को पढ़ने कुछ अच्छा है। पर देखना यह चाहिये कि मौन ने इन वरना आदि अत्र कम पसन्द किया रहने से गंडे कुछ समझ तो नहीं जाते ? कभी है की इससे हानि बहुत होती है और कभी मौन भी भापा का काम कर जाता है ।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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