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________________ भगवती के अंग बान है पति या परिणाम तुमने कोईभीकैसा भी स्वर रहा हो, चेष्टा और मुखाकृति भी कैसी ही रही हो पर अगर कृति इनसे उल्टी है तो वही उल्टा अर्थ वास्तव मे सच्चा है | एक मी उत्तेजित होकर बेटे को खूब गाली देती है कझखाने न लुंगी एंडा लेकर भगाने की या घर से निकालने की चेष्टा करती है ह भी क्रोध मे नमतमा गया है पर कुछ मिनिटो के बाद ही रोटी खिलाने के लिये बेटे को डीफिरती है और रोटी खिनी है तो उसका यह कार्य या परिणाम उसकी चांगे नपाओं [शब्द स्वर, चेष्टा, मुखाकृति ] को जीतकर उनपर अप्रामाणिकता की छाप मार जाता है। एक भाई बड़ी नम्रता से पेश आते हैं, हाथ जोड़ते हैं, सेना करने की उत्सुकता दिखाते हैं पर समर्थ होने पर भी मौके पर काम नहीं आते तो उनकी शब्दादि भाषा की अपेक्षा यह पान अधिक प्रामाणिक हैं। एकबार एक प्रसिद्ध श्रीमान् से मैं मिलने गया, शब्द स्वर चेष्टा और मुख कृति से उनने खूब आदर व्यक्त किया, बोले- शाम का भोजन आपको मेरे यहां करना पड़ेगा। मैंने कहामुझे तो जाना है । वे बोले-कोई बात नहीं, एक ट्रेन पीछे सही, कुछ बात करेंगे। मैं ठीक चार बजे आपके स्थान पर मोटर भेज दूंगा । मैं उन्हीं की धर्मशाला में ठहरा था अनुरोध भी उनने जरूरत से ज्यादा किया था, पर चार बजे के बदले ६ || बज गये ठंड के दिन थे इसलिये भोजन का समय ही निकल गया पर गाड़ी न आई, लाचार होकर सात बजे की गाड़ी से में भूखा ही वहां से रवाना हो गया । इस परिणाम भाषा ने उनकी चारों भाषाओं का मूल्य कौड़ी भर न रक्खा। हो सकता है कि | ३३४ गये गये हो पि t उसके .5 उनकी की अनुसार उनके भूलने की बात पर विश्वास करने की जरूरत नहीं है ] फिर भी उनके वचन का अर्थ उनके कार्य से ही निश्चित हुआ । शब्द और अर्थ का कसा सम्बन्ध है और किससे कैसा अर्थ समझना चाहिये ! दूसरे के सत्यव्रत को हम समझ सकें, अपने सत्य को समझा सकें, दूसरे के असत्य के भ्रम में न आयें. इसके लिये उपर्युक्त भाषाहार तथा अभिधा आदि का वर्णन किया गया है। इसके बाद संयम की दृष्टि से अर्थात् भगवती अहिंसा की दृष्टि से हमें सत पर विचार करना है । भगवती अहिंसा का अंग है इसलिये सत्यासत्य का निर्णय हमें लोकहित की दृष्टि से करना चाहिये। कौनसा वचन सत्य है और -इसकी कसौटी लोकहित अर्थात् ही कहा जा सकता है । इसलिये कभी कभी असत्य भी सत्य हो जाता है और सत्य भी असत्य हो जाता है। जैसे- हिंसा भी अहिंसा है और अहिंसा भी हिंसा है - इसी तरह सत्य असत्य के विषय में भी समझना चाहिये । इस विषय में भी को कसोटी बनाना चाहिये। वर्धन रक्षण और विनिमय के लिये जे वचन कहे जायचे सत्य है, के लिये जो कहे जॉय है। सत्य और ससत्य के समझने में सुविधा हो इसलिये सत्य और तथ्य का अन्तर ध्यान में रखना जरूरी है। जो विश्वहित की दृष्टि से उचित हो ठीक हो उसे सत्य कहते हैं, जो घटना या वस्तुस्थिति की दृष्टि से ठीक हो उसे
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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