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________________ सत्यामृत सभी द्वारों से एक ही भाव दिखाई देगा तभी जैसा स्वर हो वैसा अर्थ बन जाता है। शब्द से हमारी सचाई सिद्ध होगी। स्वर का मूल्य अधिक है क्योंकि शब्द की अपेक्षा भाषाद्वार- भाषा के पांच द्वार है मनुष्य स्वर पर अंकुश कम रखता है . या रख १. शब्द, २. स्वर, ३. चेष्टा, ४. आकृति पाता है-इसलिये उसके भीतरी भाव शीघ्र प्रकट और ५. कृति अर्थात् परिणाम या फल । हो जाते हैं। अपने मन के भाव शब्द द्वारा तो प्रगट ३---कभी कभी मनुष्य शब्द और स्वर किये जाते हैं परन्तु शब्द का ऊँचा नीचा स्वर, पर अंकुश रखकर अपने मनोभावों से उल्टे भाव शरीर की चेष्टाएँ, मुम्ब की आकृति और उनके प्रगट कर जाता है पर उसकी चेष्टाएँ उसके भावों के प्रदर्शन करने का परिणाम, इससे भी को प्रगट कर जाती है। जैसे कोई मनके भाव मालूम होते है। आदमी बिना किसी उत्तेजना के कह रहा है१-शब्द से मकान तीन तरह काम आपस द्वेष नहीं करता, मैं भला चाहता है: होता है उच्चरित, लिग्वित, सांकेतित । मख से पर अपने हाथों की मुट्टियाँ इस तरह दबा रहा बोला गया शब्द उच्चरित शब्द है। नागरी फारसी है माना वह मुट्टी में दबाकर पीस डालना चाहता आदिलिपियों में लिखा गया शब्द लिखित शब्द है। है । इस प्रकार उसकी चष्ट! उसके भावों को बता तार आदि में जो संकेत कर लिये जाते है. अंडे रही है। एक आदमी निर्भयता की बातें करता तथा रंगों से संकेत करके जो शब्द समझ लिये है स्वर भी ऐसा ही रखता है पर भागने की या जाते है वह सारित है । मनोभाव समझने छिपने की चेष्टा करता है तो यहाँ भी असली लिये उच्चरित शब्द उपयोगी है क्योंकि उससे के मनोभाव चष्टा ही प्रगट करती है। साधारणतः स्वर चेटा आकृति का भी पूरा सहयोग मिटता शब्द और स्वर से चेष्टा बलबान है। है इतना लिखिन सांकेतित आदि में नहीं मिल ४-शब्द, स्वर, चष्टा-इन तीनों से बलवान है मुखाकृति । हम किसी से कहते हैं-बड़ी खुशी २-स्वरसे भी भावों का पता लगता है और की बात है आपने मेरे दोष बताये इसके लिये मैं इसके द्वारा शब्दों की जाँच की जाती है। क्या धन्यवाद देता हूँ। यहां स्वर कोमल है हाथ जोड़कर कहा की अपेक्षा किस स्वर में कहा, इसका मूल्य नम्रता भी प्रगट की गई है पर. नाक की अधिक होता है । प्रेम के स्वर में कभी कभी सिकुड़न ने, ओठों की विकृत बनावट ने और माताएँ बच्चों को गाली देकर भी दुलारती है पर आंखों की उग्रता ने टीक. इससे उल्टा भाव प्रगट उन गालियों से बच्चे खुश ही होते हैं। इसलिये कर दिया है जिसे प्रगट करनेवाला भी ठीक ठीक जहाँ शब्द से कोई बात कही गई है वहाँ स्वर नहीं समझ पाया है। शब्द स्वर चेष्टा पर अंकुश भी उसके अनुकत होना चाहिये या कासे का रखने की अपेक्षा मुखाकृति पर अंकुश रखना उनके विरुद्ध न होना चाहिये अगर स्वर शब्दों कठिन है इसलिये नष्ट क.ले तीनों से बलवान के द्वारा प्रगट किये गये भावों के विरुद्ध हो तो अधिक प्रामाणिक है। सन्द का अच्छा या बुरा अर्थ नाहै, ५-दाद, स्वर, चेष्टा और मुखाकृति से बल
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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