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________________ ३२९ ] मत्यामृत अभिधा के भी अनेक भेद है । कोई एक पर चढ़ने में होशियार थे । कुम्भकर्ण छः छः घर का भी नाथ न हो पर उसे पुकारने के लिये महीने सोता था अर्थात छः छः महीने तक घर जगन्नाथ कहना यह भी अमिधा है, हृदय की मेंहीबाना-पीना आलस्य में पड़ा रहता था, छ: भाक्ति दिखलाने के लिये पत्थर की मर्ति को छ: महीने घर से बाहर न निकलता था न गजभगवान कहना यह भी अभिधा है। काल मेद या सभा में जाता था। परिस्थिति भेद गौण करके पुराने राजा को राजा मनुष्य कर दिया है, पुराने जमाने में कहना यह भी अभिधा है। चमकनेवरी को बिजली और भी अधिक था इसलिये भाषा में भी वह कहना, चञ्चलता के कारण चवटा कहना यह अलंकारों को पसन्द करता था, श्रोताओं की इस भी अभिधा है अभिधा अनेक तरह की है। शब्द प्यास को बुझाने के लिये वक्ता, लेखक, कवि का अर्थ लगाते समय जहाँ जिस अभिधा का अलंकारों का खूब प्रयोग करने थे । पर कुछ प्रयोग है वहाँ वही अभिधा समझना चाहिये। समय बाद भोलेपन के कारण लोग उन अर्थी २ लक्षणा-अभिधेय अर्थ जहाँ संगत या का लक्ष्यता भल गये, उन्हें अभिधय समझने सल न हो वहाँ उससे सम्बद्ध दुसरा अर्थ ग्रहण लगे, इसका फल यह हुआ कि पुगनी कथाएँ करना लक्षणा है । जैसे 'नगर दौड़ा आया' इस धर्मशास्त्र और इतिहास से हटकर गपाड़ा में गिनी बाक्य में नगर का अर्थ नारचित्रमा है क्योंकि जाने लगा पर इसमें मूल कथाकारों की भल नगर (घर सड़क आदि) दौड नहीं सकता। नहा है किंतु लक्षण। और अभिधा का भेद न सरा अर्थ लेने में इतना तो देखना ही पड़ता है समझने वाले या समझकर भी वहां काम में न कि अभिधेय अर्थ से उसका कछ संबंध या ला सकनेवाले भोले पाठकों और अनुयायियों की नही। कुछ न कुछ संबंध - समानता - संयोग भल है । इसलिये सत्यासत्य का निर्णय करते आदि अवश्य होना चाहिये जैसा कि नगरवासियों समय हमें अभिधा और लक्षणा का भेद न भूल का संबंध नगर में है। जाना चाहिये। ३ व्यञ्जना-जहाँ अभिधा और लक्षणा से इन्द्र के अमी थीं-नका लक्षणा- परा अर्थ न निकलता हो वहाँ उससे भी अधिक रूप अर्थ है-वह चारों तरफ अपनी नजा अर्थ का ज्ञान कराने वाली व्यञ्जना है। जैसे रखता था या उसके खुफिया विभाग में हजार किसी ने कहा-संध्या हो गई, तो अभिधा का अर्थ आदमी थे आदि । सहस्रबाहु के हजार हाथ थे, तो जल्दी समझ में आगया पर यह बान इस समय इसका असर अर्थ यह कि उसके हाथों में किस बात को समझाने के लिये कही गई है यह हजार हाथों का या बहुत हायों का बल था। समझ में न आया । यह समझा देना व्यञ्जना का कि वर्णनों में प्रायः लक्षणा का उपयोग काम है कि सम्स्या हो इसलिये प्रार्थना को किया जाता है । मोन का सिर हाथी सरीखा चलो, या दीपक जन्मओ अदि । धर्मशास्त्र में था, इसका अर्थ के उन्म मिर बड़ा था। जो कवार दी जाती है उनकः अमन्दी अर्थ व्यञ्जना हनुमान बन्दर थे अर्थात् उछलने-कूदने और पेड़ों मे मतम होता है । कथाओं का व्यंग्य अर्थ ही
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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