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________________ भगवती के अंग देखना चाहिये और अर्थ की अपेक्षा सत्य राम-रामण असत्य का निर्णय करना चाहिये । की कथा शूटी है या सच्ची इससे कोई मतलब नहीं, क्योंकि उस कथा का मुख्य अर्थ यह है कि राम की तरह बनो, रावण की तरह मत बनो । यह अर्थ जब तक झूठा नहीं है तब तक यह कथा झूठी नहीं है। वचन की सका विचार करते समय यह देख लेना चाहिये कि उसका मत्यर्थ क्या है ? अभिधा है लक्षण है या व्यञ्जना 13: अगर अभिधा है तो अभिया अगर सो उस वचन को सत्य कहो अन्यथा झूठ कहो । इतिहास, विज्ञान, दर्शन, आदि में अभिधेय अर्थ की मुख्यता रहती है इसलिये यहाँ सत्यासत्य का निर्णय इसी अपेक्षा मे करना चाहिये। सत्यवादी का कर्तव्य है कि वह इनके प्रकरण में अयि अर्थ की दृष्टि से जान बुझकर झुट न बोले । जहाँ लक्षण हो वहाँ उसीकी अपेक्षा में सत्यासत्य का निर्णय करना चाहिये। इस अपेक्ष। से नगर का दौड़ना भी सत्य है, मुख को चन्द्र कहना भी सत्य है, हनुमान को बन्दर कहना भी सत्य है पर अगर लक्षणा को अभिधा समझ लिया जाय अर्थात् हनुमान को सचमुच बन्दर समझ लिया जाय, मुख को सचमुच चन्द्र समझ लिया जाय, जैन कर बीच में बैठकर चारों तरफ देख देखकर व्याख्यान देते थे इसलिये उन्हें चतुर्मुख कहा गया अब इसीसे उनके चारों तरफ मुख मान लिये जायें, शुद्ध रक्त को दूध की उपनदी सो उसे दूध ही मान जाय, तो अ है क्योंकि वहां लक्षणा की जगह अभिधा का प्रयोग किया गया है । कविता, चित्र, विशेष उपयोग होता है। [ ३३० आदि में लक्षणा का जहाँ व्या व्यंग्य अर्थ देखकर ही करना ने सदाचार, सत्यासत्य का निर्णय चाहिये। जैसे किसी आदि धर्महै, आत्मा है, पर शास्त्रीय उपदेश लोक है, स्वर्ग नरक है। इन वाक्यों का अभिधेय अर्थ के लिये मुख्य है परन्तु धर्मशास्त्र के लिये वह गौण है। धर्मशास्त्र का मुख्य अर्थ व्यञ्जना से मालूम होगा कि ईश्वरादि है इसलिये हमें पाप से बचना चाहिये, जीवन के के क्षुद्र में अपने की न भुलाना चाहिये आदि । यह व्यंग्यार्थ सत्य है इसलिये ईश्वरादि अभिधा की दृष्टि से कैसे भी हो धर्मशास्त्र उन्हें सत्य कहेगा । इसी प्रकार कथा अभिनेय अर्थ की दृष्टि से कैसी भी हो पर व्यंग्यार्थ राम की तरह बनना चाहिये आदि की अपेक्षा सत्य ही है। प्रश्न नहीं अनिया या क्षणा दो में से कोई एक रहे वह व्यक्त अर्थ आ सकता है, अगर अभय और लक्ष्य दोनों में से एक भी अर्थ न होगा तो व्य किन आधार पर खड़े होंगे ! में अमिषा या उत्तर- हरएक वाक्य क्षणा रहती है, मेद इतना ही होता है कि कहीं इनमें सचाई होती है कहीं नहीं होती, सां देखना यही चाहिये कि जो मुख्य अर्थ है उसमें सचाई है या नहीं। हो है कि अभिय या लक्ष्य अर्थ असत्य हो किंतु व्यंग्य अर्थ ठीक होऔरी हो तो यह वाक्य सत्य | सत्य असत्यका निर्णय
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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