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________________ भगवती के अंग दर न लिख सकनेका नुकसान भी कुछ कम न विश्वहित को दूसरे शब्दों से की हम होगा। इस प्रकार इतना घाटा उठाकर आप मफ्त सल कह सकते हैं। ल म उसीसे करते हैं की स्याही का सौदा करते हैं, आपकी हिम्मत तो जिससे हमें कुछ द्वेष होता है, जुदाई का भाव गजब की है! होता है, प्रम नहीं होना । लिये असल्य भेदअन्य सचेरियों के विषय में भी कम भाव मे.. है -- सस्य प्रेम " है मी तरह का बहुत कुछ कहा जा सकता इसलिय सत्यवत को हम प्रेम का या भगवती है। नजर चोरी आदि में येहानियां तोही का अङ्ग कहते है। साथ ही राजदंड आदि की भी परेशानी है। : सहयोग पर टिका हुआ है इस प्रकार चोर का जीवन महान दःखी जीवन और मइयांग विश्वास पर टिका हुआ है। है। नामचोर आदि में भी इसी तरह का घाटा जितन अंशभे हम विश्वासका पान करते है उतने और दृाग्य है। अशर्म सहयोग का नाश करते हैं: मोदी इसके अतिरिक्त चोरी से जीवन में जो सुरक्षित रखने के लिये विश्वास का सुरक्षित अशान्ति होती है अविश्वास बढ़ता है, सहयोग रखना सत्य है और विश्वामयात अमत्य है। और प्रेम नष्ट होता है उससे . in: जसा णानः व्यवहार में ऐसा समझा जाता नरक बनजाता है उसका कोई ठिकाना है ! चार है कि जो वस्तु जैसी है उसका वैसा ही कहना से चीज का उत्पादन तो होता है जब समी में सत्य है, क्योंकि इससे मनुष्य का विश्वास कायम वृत्त आजायी तो मनुष्य कितने दिन जियेगा ! रहता है । इसमें सन्देह नहीं कि प्रकार अर्थ इस प्रकार यह वैयक्तिक दृष्टि से और सामहिक और शब्दकी एकता सत्य है पर अर्थ का दृष्टिसे अत्यन्त दुःखप्रद है। सिौ. ही नहीं है य भी है। ईमानदार के जीवन में बड़ी शक्ति और 3-1 में शब्द के अर्थ तीन तरह के निर्भयता रहती है । उनका दिल और मस्तक माने गय है-१ अभिधा २ लक्षणा और ३ व्याना। उंचा रहता है वह बिनयी होता है पर उममें और अभिम भी अनेक तरह की होती है। उनमें दीनता नहीं होती । अगर वह विरवादी हे तो मुख्य और प्रकरण संगत अर्थ कौनसा है इस बात उसे ऐसा मालूम होता है मानो वह ईश्वर के का अच्छी तरह विचार करके किसी वाक्य का भरक्षण में है जब कि चार ईश्वर की पूजा करते अर्थ समझना चाहिये फिर शब्द और अर्थ की दुए भी उसके नामसे काँप उठता है । ईमानदारी एकता देखना चाहिये। स्वयं एक सुख है दूसरेको भी सुख देनेवाली है। अभिधा के सांकेतिक अर्थ को इस प्रकार विश्व प्रयाण के लिये यह बहुत उप- अनार अभिधा है । जैसे , मनुष्य योगी है। आदि शब्दों का मकन अमुक अमुक प्राणियों में ३ सत्यव्रत किया गया है इसलिये घोड़ा आदि शब्दों से सत्य का अर्थ यहां भगवान सत्य नहीं है उनउन जानवरों के बतानेवाली अभिधा है। ऐसे रोमी भाषा का प्रयोग करना है जिससे अर्थ को अभिधेय अर्थ कहते हैं।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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