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________________ ३२७ ] मत्यामत - से चोरी ने सदोषोर है । जैस क्या चोरी है और क्या चोरी नहीं है इसका किसी चीज का काफी उपयोग कर लिया जाय निर्णय पूर्वोक्त वर्णन से होजाता है उसके अनुसार और फिर कहा जाय कि आपकी चीज का कुछ जो कुछ चोरी सिद्ध हो उसका अधिक से अधिक उपयोग कर लिया है । कुछ और काफी में स्याग करना चाहिये । चोर शायद चोरी को सस्ता विभाजक रेखा न होने से यहाँ शब्दश्लेष के रूप सौदा समझते होंगे। पर यह सब से महँगा सौदा में वाक्य का प्रयोग किया गया। है। चोरी करनेवाले चैन से न तो खासकते हैं २ नज़रचार-- नजर बचाकर किसी की न बैठ सकते हैं, इज्जत नष्ट करते हैं, लज्जित चीज का उपयोग कर लेनेवाला । जैसे बिना होना पड़ता है इत्यादि नाना कष्ट हैं । खुद चोरी टिकिट रेल में यात्रा करनेवाला आदि। करते समय मनुष्य को जो मानसिक और शारी ३ठगचोर-चोखा देकर किसी की रिक कष्ट उठाना पड़ता है वह मिहनत मजूरी के चीज का उपयोग करनेवाला । जैसे किसी तागे- कष्ट से कारी ज्यादा है। . वाले से कहा- भाई, अमुक जगह से एक सवारी छनचोरी आदि में भी हम जितना पाते हैं लाना है ले आओ। इसप्रकार तागे में बैठकर उससे कई गुणा सन्मान आदि नष्ट कर देते हैं। सवारी लेने के बहाने किसी जगह जाना और ___ सब मिलाकर उनका सौदा महँगा ही रहता है । कह देना कि यहाँ को तयारी नहीं है तुम चले जाओ। झूठमूठ बीमार लँगड़ा आदि बनकर एकबार एक भाईने मुझसे पूछा-फाउन्टेन किसी की गाड़ी का उपयोग कर लेना आदि।। पेन की स्याही की दावात आप कितने में लाते ४ उद्घाटकचोर- ताला बगैरह तोड़ न हैं ! मैने कहा चार आने में । वे बोले-मैं काफी कर किसी की चीज निकाल लेना और उसका सस्ते में निवट जाता हूं । मैंने पूछा-सो कैसे ? उपयोग करके छोड़ देना। बोले-कभी इसके यहां से स्याही भर लेता हूं कभी ५ बलातचोर---- जबर्दस्ती किसी की उसके यहां से इस तरह काम चल जाता है। चीन का उपयोग कर लेनेवाला । बेगार आदि मैंने कहा-इतना महगा सौदा करने की इस श्रेणी में आ जाती है। ६ घातकचार--- मारपीटकर भी किसी वे जरा चकित होकर बोले- क्या मुफ्त में की चीज का उपयोग करनेवाला । बेगार में कहीं भी कोई चीज मँहगी होती है ! । कहीं बालक चोरी का रूप देखा जाता है। मैंने कहा बहुत मंहगी। आप आधे पैसे की इन चौबीस प्रकार के अधातों को त्याग कर स्याही मुफ्त में जहां से लेते हैं वहां सैकड़ों रुपयों देने से मनुष्य अंचयिती या ईमानदार का का गौरव दे आते हैं और साथ ही कल के लिये चार पैसे के लाभका द्वार भी बन्द कर आते हैं। प्राणधान के समान अर्थात में भी व्यवहार साथ ही स्याही खलास होनेपर दाता ढूँढने में पञ्चक आदि का विचार होता है जिसका विवे- और स्याही लेने को मनिका जमाने में जो समय चन पहिले किया गया है । इसलिये तक्षण भक्षण शक्ति बर्बाद होती होगी उसकी कीमत भी आधे रूप अर्थधात ही चोरी है, वन रक्षण चोरी नहीं है। पैसे ऊपर से जरूर ज्यादा होगी । और उतनी हिम्मत मुझमें नहीं है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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