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________________ भगवती के अंग के कपड़ों का उपयोग कर ले तो अनुगनी कि यह हमें उपकृत या ऋणी न मानले अपनी होजायगी । हां, मालिक स्वेच्छा से अनुमति दे मामूची नीजका कुछ उपयोग करादेना मगर मेक इसर। है। हां, यह सोचकर कि हमने तो इनकी चीजों हमने किसी की चीज का उपयोग किया का बहुत उपयोग किया है थोड़ा बहुत उपयोग उसका मालिक सं सा कुछ कह न सका पर ये हमारी चीजों का करलें तो कुछ तो ऋण चुके-- उसने उसे दूसरे दिन दूसरी जगह कुछ इस दंग उपयोग करने देना उत्रण चोरी नहीं है। से सुरक्षित रख दिया कि जिससे किसी का ध्यान (ज) की भली हुई चीज न जाय पर हमने हूँढकर फिर भी उसी की चीज इसलिये याद न दिलाना कि कुछ दिन काम लेने का उपयोग किया यह स्पष्ट ही अनुर है। के बाद याद दिलाई जायगी कुछ दिन इसमे धनिष्ट प्रेम के खास स्वास अवसरों को छोड़ कुछ काम तो ले लें, यह विस्मृति चारी है। कर मातमालिक की प्रसन्नतापूर्वक दी माधारणतः यह नियम रखना चाहिये कि हुई अनुज्ञा के बिना किसी की चीज का उपयोग अपने यहा भी चीज का उपयोग न किया न करना चाहिये और न अपनी ही तरफ से जाय वह ज्या की त्यों सुरक्षित रवी जाय । धनिष्ट प्रेमका दावा करके प्रेमके बहाने इस तरह हां, कोई मामली चीज हो, अथवा उपयोग करने की उपयोग चारी छिपाना चाहिये। में उसके खराब होने का डर न हो तो बात (घ) भिक्षाचोर हर समय आवश्यक होने पर दुसरी है। है कि नहीं इसका पता भी और खरीदने की आर्थिक शक्ति होने पर भी तो अपने भावों से ही लग सकता है पर बाह्यचीज न खरीदना या घर में रहने पर भी अपनी क्रिया से भी यह बात नहीं छिपतः । छनचार चीज का उपयोग न करना किन्तु लोभवश कोई हाने से कोई बहाना जरूर बना सकता है पर बहाना बनाकर दूसरे की चीज का माँगकर उप. इससे उसका दुष्प्रभाव नहीं रुकता । योग करना भिक्षाचोरी है । आवश्यकतावश उप- (झ) मानचोर- मौन का ऐसा उपयोग योग के लिये एक दूसरे से चीजें माँगना ही करना जिसमें उपयोगचोरी करते हुए भी उसके पड़ती हैं पर जहां इस व्यवहार की ओट में लोभ आरोप से बचे रह । जैसे हम किसी ट्रामगाड़ी है छल है वहां यह चोरी ही है। में बैठे, गाड़ी में भीड़ है इसलिये - (ङ) कणग्राहीचोर- नमूने के रूपमें कई जगह ध्यान नहीं रख सका कि कितने टिकिट लिम से चीजें मांगना, थोड़ा बहुत उपयोग करके नापसन्द किसने नहीं लिया- वह पूछता अाल.. ' कहकर वापिस करदेना इस प्रकार दूसरों टिकिट ! टिकिट : विकिः । पर यह सोचकी चीज़से अच्छा लाभ उठाना कणग्राही चोरी है। कर कि कोई पूछेगा तो कह देंगे कि हमारा ध्यान (च) प्रमादचोर--सरे की चीज का लापर्वाही नहीं था, हम मैन बारा करासे उपयोग करना प्रमादचोरी है। चारी है । मौन की आट में हम मुक्त में ही (छ) उऋणचोर--किसी की अच्छी चीज का ट्राम का उपयोग कर लेना चाहते हैं। विशाल उपयोग कर लेने के बाद इस इच्छा से (अ) शब्दरूपचार--सरा वाक्यों
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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