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________________ ३२५ ] सत्यामृत गुन हो भने किन होते रहते हैं और सोचते परस्पर उपयोग की कोई बात तय हुई हो तो इस रहते हैं कि ऐसा कोई अवसर मिले जब इसका बहाने दूसरे की अच्छी चौज का उपयोग करना उपकारीपन छीन लिया जाय । इसलिये वे ऐसी और अपनी खराब चीज उपयोग के लिये देना घटना या घटनाओं की ताक में रहते हैं जिनको विनिम्मर है। हां, अगर अपने पास अच्छी आकार मिद किया जासके । बस उनके द्वारा चीज न हो और हमने यह बात सूचित-मी कर वे पुराने उपकारों को लूट लेते है। दी हो तो यह अत दूसरी है। ___ ५ बन्लानचोर--- से उपकार को (ख) विभागचोर- किसी चीज का उपअस्वीकार करने वाला बटाचार २ . योग करने में बटवारा करना हो तो उसमें अनु६ घातकचोर-अपनी उपकृतता छिपाने के चित पक्षपात करना विभागचोरी है। दो उप घात करने, उसकी निन्दा (ग) अनुज्ञा चोर - बेतकल्लुफी के बहाने करनेवाला और उसके उपकार को अपकार सिद्ध किसी की चीज का उपयोग कर लेना · अनुज्ञाकरने वाला घातकचेर है। ___चोरी है । बहुत से आदमियों की यह आदत उपयोगचोर-धनचोर और उपयोग चोर रहती है कि वे अपनी चीज सुरक्षित रखते हैं एक सरीख अन्तर इतना ही है कि धनचौर में और दूसरे की चीज उसकी अनुज्ञा के बिना वस्तु ही लेलीजाती है जब कि उपयोगचोर में उपयोग करते हैं। मालिक संकोचवश कुछ कह सिर्फ उस बस्त का उपयोग किया जाता है नहीं सकता, पर वह मन ही मन ऐसा डरने उनालय धन चोर की अपेक्षा न लगता है जैसे चोर से डरता हो । इसीलिये आंशिकचोरी है। फिर भी चोरी अवश्य है। अपनी चीज को छिपाने का प्रयत्न करता है । कहीं मानी तो होती है पर उपयोगचोरी किस चीज़ का उपयोग करन, अनुज्ञात है नहीं होती । एक सार्वजनिक वाचि में किसी और किस चीज़ का उपयोग करना अनुज्ञात नहीं बेच का उपयोग करलेना चोरी नहीं है पर बेंच है इसका विचार करने रहना चाहिये। परिस्थिनिलेना चोरी है । परिस्थिति आदि का विचार वश कहीं भ्रम होसकता है पर सूचना मिलते ही करके यह देखना चाहिये कि जिस चीज का उसके पालन करने पर चोरी नहीं होती, पर हम उपयोर कर रहे हैं उसके मालिक की इच्छा बरसी बातें तो ऐसी होती है जिनको हम अच्छी हमें उपयोग करने देने की है या नही! यदि हो तरह समझ सकते हैं पर जानबूझकर दूसरे को दे यर करने में चोरी नहीं है याद नहीं है कोचमें डालने है या उसके संकेतोंकी नासमझी ने योग करना चोरी है भले ही वह संकोच के नामपर उपेक्षा करते हैं। उपेक्षा भय आदि के कारण कह सके या न हम किसी जगह बैठे हैं, पानी बरस रहा है कह सके। और धनचौर के समान ने पेशाब को विभी जगह जाना है हमने पास में के भी मंद पभेद होते हैं उनकः , संक्षेप में रक्खे हुए किसी के छत्ते का उपयोग करलिया र्शन कर दिया " । और मे का लेसा सुरक्षित रखदिया तो अनुज्ञानवयर-एक दूसरे में नाक चोरी नहीं हुई पर हम किसी के आदने विछाने
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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