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________________ भगवती के अंग [३२४ मुझे अधिक कठिनाई हो, हम किसी दुसरे काममें तुम्हारा ऋण चुका दिया। आदि । लगे हों इसीलिये किसी से कहा गया हो, अपने (ज) विविधोर-किसने हमारा कोई उपकार पद आदि के कारण किसी से कोई काम कराना किया पर कुछ समय बाद वह हमें और हमारे पर शिष्टता के प्रतिकूल न हो तो भिक्ष दोरी नहीं किये गये उपकार को भल गया । मिलने पर हमने होती । जैसे अपने में पानी खींचने की ताकत हो उसे पहिचाना पर उसने हमें नाम तब तो भी हम पुत्र से शिष्य से नौकर से पानी के इस आशा से हमने भी न पहिचानने का डोल लिये कह सकते हैं । हम ट्रेन में बैठे हों और किया कि उसका उपकार हमें न मानना पड़े। पानी लाने में ट्रेन छूटने का डर हो तो बाहर के (4) मौनचोर--न उपकारी भला हो न उपकृत आदमी से कह सकते है। मतलब यह कि योग्य पर मिलनेपर और अवसर आजाने पर भी कृतज्ञता निमित्त होना चाहिये नहीं तो भिक्षाचोरी हो प्रगट न करना अनि जानसकर मौन रह जाना। जायगी। (ञ) दिनार-ऊपर के ही प्रकरण में (ङ) कगम ही चोरी- देखू तुम कैसा मौन न रहकर ऐसे शब्दोंमें उपकार मानना जिन करते हो, जरा कर के तो दिवाओ। उसने दिया की वाक्यरचना, व्यङ्ग-स्वर आदि के कारण उपहमने कहा-अच्छा ठीक है, जरूरत होने पर हम कार का अस्वीकार भी अर्थ निकलता हो । जैसे तुम्हें बुलायेगे । इस तरह बढ़तों से काम के नमने आपके उसकारों से तो मैं लद गया हूं, इस वाक्य देखे और पूरा कग लिया पर उपकार किसी का को ऐसी भावभंगी से कहना जिससे वह बात न माना यह कणग्राहीघोरी है। एक बार एक या तो हंसी में उड़जाय या उसका उल्टा ही अर्थ भाई बोले-हमने अभुक गाँव में अपना मकान पूरा होजाय यह सन्द पोर है। बना लिया और लोहेका मनों सामान वहां पहुचाया नज़रचार-परोक्ष में किसी के उपकार पर न तो भाड़े में एक पैसा दिया न किसी का को स्वीकार न करनेवर नजरचोर है। वह अहसानमन्द हुआ। उस गाँव की तरफ कोई उपकारी की नजर बनाकर उपकार अस्वीकार माड़ी जाती होती तो उस में दो चार सेर लोहे करता है। की पोटली रख देता और कहता उस गाँव में ३ ठगनोर-उकार कराके दम्भ, छल आदि सड़क पर तुम्हें हमारा आदमी मिलेगा उसका यह से अपनी उपकृतता किमानेवरः। जैसे एक मा नाम है उसे देदेना । इस तरह थोड़ा थोड़ा न तो कोई समाजसेवा करता है न उसके प्रति करके सामान पहुंचा दिया। यह कणग्राही चोरी किया गया उपकार नमाजमय के लिये किर भी वेष, सम्प्रदाय आदि की दुहाई देकर और (च) प्रमादचोर--लापर्वाही से किसी को धन्य अन्धश्रद्धागम्य बातों के नामर छाट करके उपकार बाद न देना आदि प्रमादचोरी है। स्वीकार नहीं करता, वह ठगचोर है। (छ) उऋणचोर--पूरा ऋण न चुका कर यह ४ उद्घाटकचोर--उपकार के उत्सर को घोपित करना कि चुका दिया । जैसे माँ बाप को नष्ट करने के लिये जो दिसा रहा है वह बुढ़ापे में खाना न देकर यह कहना कि हमने उद्धाटक चोर है । बहुत से मनुष्य किसी से उप
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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