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________________ ३२१ ] का कुछ बोझ ही बढ़ाते हैं वे कणग्राहक चोर हैं जिज्ञासा से जाय, समय काटने के लिये न जाय, बिना कुछ किये दूसरों के यश में हिस्सा न बटाय तो कणग्राहकचोरी नहीं है । मत्यामृत (च) प्रमादचार - किसी के नाम के उचित प्रकाशन में लापर्वाही करनेवाला प्रमादचार है । यों तो सबकी जिम्मेदारी कौन लेसकता है पर जहां किसी सम्बन्ध से हमारे ऊपर दूसरे के नामप्रकाशन की जिम्मेदारी आगई वहां लापर्वाही नहीं करना चाहिये । और न किसी के अपयश का निरर्थक प्रसार करना चाहिये । दूसरे के यशअपयश विपय अपनी जिम्मेदारी न सम्हालना प्रमादचोरी है / (छ) उऋण चोर - थोड़े यश की ओट में किसी का बड़ा यश छिपाजाना उऋण है। जैस म. महावीर या म. बुद्ध का परिचय देते समय उनका तीर्थंकरत्व छिपाकर सिर्फ यह कहना कि ये अच्छे राजकुमार हैं। किसी खास बात का ही ही परिचय देने का अवसर हो तो बात दूसरी है क्योंकि मनमें छल हो स्वार्थ हो तभी उऋणचोरी होती है। खास बात के परिचय में छळ आदि नहीं कहा जासकता । एक (ज) विस्मृतिचोर - दूसरे का यश भ्रमवश अपने को मिल गया हो और दूसरा उसे लेना भूल गया हो या उपेक्षा की हो तो उसे अपनाये रहना विस्मृतिचोरी है। जैसे मानलो मैं साधारण चित्रकार हूँ मेरे यहाँ कोई चतुर चित्रकार आया उसके पास उसीके बनाये हुए बहुत से चित्र थे उनमें से एक वह भूल गया। मैंने उसका चित्र इस आशय से अपने कमरे में लौंग लिया कि लोग बिना कहे और बिना पूछे ही उसका कती मुझे समझेंगे । इस प्रकार एक के भूले हुए यश का मैंने अपने यश के समान उपयोग कर लिया इससे मैं विस्मृतिचोर हो गया । (झ) मौनचोर - ऊपर की घटना में चित्र के बनाने वाले का नाम पूछे जाने पर इस तरह मौन साधाजाय कि वह अपने को ही कर्ता समझे, यह मौन चोरी है। दूसरे का वश अपनाने में मौन का उपयोग करने वाला मौनचोर है। 1 (ञ) शब्द पचोर - दूसरे के यश छिपाने में दुहरी भाषा का उपयोग करनेवाला शब्दश्लेचोर है। जैसे - यह एक ऐसे आदमी का बनाया है जो अमुक गांव में रहता है अमुक जाति का है आदि ऐसे विशेषण दिये जायँ जो अपने में और उस चित्रके बनानेवाल में समान हों परन्तु पूछनेवाले का ध्यान उसकी तरफ न जाय सिर्फ अपनी तरफ जाय इस प्रकार दुहरे अर्थ के शब्द बोलकर दूसरों का यश लेलेना चोरी है । इस प्रकार नाम की छन्नचोरी भी अनेक तरह की है । २ नज़रचोर - दूसरे की नज़र बचाकर दूसरे का यश आदर सत्कार लेलेना नाम की नज़र चोरी है। जैसे मालिक के न होने पर किसी से कहना यहाँ का मालिक मैं हूँ । झूठ मूठ ही कहना अमुक का रचयिता, संस्थापक मैं हूँ । इसी प्रकार किसी कर्तृत्व में झूठा साँझा बताना आदि भी नजर चोरी है। न्यायालय विद्यालय आदि संस्थाओं में अधिकारी न होते हुए भी ऐसे आसन पर इस आशय से बैठना जिससे लोग न्यायाधीश अध्यापक प्रमुख आदि समझे यह भी नजर चोरी है । इसीप्रकार किसी के विचारों को अपने विचार
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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