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________________ [ ३१८ भगवती के अंग धन लूटनेवाले घातकचोर ही हैं। प्रश्न--निमयनारी नो छन अर्थात् टैंकी इस प्रकार धनचौर छः तरह के होते हैं। हुई चोरी है, नाम के लुटारुओं को मार को प्रश्न-कोई किसी को पत्नी का हरण करले कहना चाहिये ! तो वह धनचोर कहलायगा कि नहीं ! यदि उनर--यह लूट किसी की ओटमें हो नहीं तो पत्नी-हग्ण पाप न रहा; यदि हाँ, तो तो छनचोरी है अन्यथा नहरको टगचोरी आदि पत्नी की गिनती भी धन में हो गई। है। जैसे किसी ने बचन तो दिया कि मैं यों उत्तर- इस दृष्टि से पतिक लिये पत्नी धन करूँगा स्यों करूँगा, इतना दान दूंगा ऐसी मदद ही है और पत्नी के लिये पति धन । जो चीज करूँगा आदि । उनके वचनों पर विश्वास करके अपने उपयोग के लिये है और दी ली जासकती उनका और दूसरों का उत्साह बढ़ाने के लिये है वही धन है । पति पत्नी सन्तान आदि सभी उनकी काफी तारीफ़ कर दी गई, इस प्रकार वचन धन हो सकते हैं इसलिये इन को राने देनेवाले भाईने तारीफ तो लूट ट पर पीछे से घर धनचोर कहलायगा। बाहर की अडचने तर वचन पूरा न किया, नामचोर-नामचोर भी तरह के होते या वचन भल ही गये, उपेक्षा करदी, तो यह है। यश आदर सत्कार आदि सब नाम ही है। छनचारी कहलाई। लोग धनकी तरह नाम भी चुराते हैं। नामकी प्रश्न-रेसे अवसर आते हैं जब हम समझते इच्छा हरएक को होती है और पेट भर जाने पर है कि हम ऐसा काम कर सकेंगे इसलिये इसके मनुष्य सबसे अधिक नाम के लिये ही प्रयत्न करता अनुसार घोषणा कर देते हैं पर पीछे से परिस्थिति है । ऐसी हालत में कभी कभी नाम का मूल्य ऐसी बदल जाती है कि हम इच्छा रखते हुए भी धन से भी बढ़जाता है । नामचोर धनचोर की वचन पुरा नहीं कर पाते तो इसमें विनिमय चोरी तरह किसी को स्थूल हानि नहीं पहुँचाते परन्तु क्या हुई ! मानसिक कष्ट इतना अधिक पहुँचाते हैं कि नाम- उत्तर-सचमुच में यदि परिस्थिति प्रतिकूल चोर धनचोरों के समान ही निन्दनीय हैं। हो गई हो तो विनिमयचोरी नहीं होती पर छन्न धनचोरों के जैसे अनेक भेद हैं उसी प्रतिकूलता का बहाना हो तो चोरी होती है और तरह छन्न नामचोरों के भी हैं। बहाना होने के कारण यह छन चोरी है। यहाँ (क)-विनिमय-कम मूल्यकी सेवा आदि देना यह बात भी ख़याल रखना चाहिये कि अपने और किसी बहाने से अधिक मल्य का यश आदर बचन का मूल्य घट न जावे। सद्भावना व्यक्त पूजा पद आदि ले लेने की कोशिश करना नाम की करो, उत्साह बढ़ाओ, र ऐसा वचन मन दोलित विनिमयचोग है। यह विनिमयचोरी अधिकांश के पाटन करने का तुम्हारा निभय नहीं है और मनुष्य किया करते हैं पर चोरों से भरे हुए जगत न तारीफ़ लूटने के लिये ही सद्भाव क को । में अन्त में सभी चोरों को परस्थर में लुट जाना अपया विनिमयचोरी होगी। पड़ता है इसलिये लूटा हा यश अंत में मूलका प्रश्न-हमने किसी काम का या दान का भी यश लेकर नष्ट ही होजाता है। वचन दिया, यश भी मिल गया पर पीछे से
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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