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________________ ३१७ ] मत्यामृत नाम बिलकुल कल्पित था जो किसी दुकान पर कर देना आदि छल हैं । साधुवेषी ठग जितने मिल ही नहीं सकती थी। वह मिली उस ठगके चमत्कार दिखला सकते हैं उससे अधिक चमत्कार साथीदार की दुकान पर । उसने संकेत के अनु- तो जादु के खिलाड़ी दिखला सकते हैं और उस सार काफ़ी दाम वसूल किये, नुसखा तो निःसार से भी अधिक और महान् चमत्कार भौतिक था पर दोनों ठगों को काफी दाम मिलगये । वह विज्ञान के विद्वान् दिखला सकते हैं, दिखलाते हैं। दुकानदार और हकीम दोनों ही ठगचोर निकले। इस प्रकार योग या चमत्कार के नाम पर कदापि धर्म और अतिशयों के नामपर भी बहत से भुलावे में न आना चाहिये । आदमी ठगचोरी किया करते हैं । साधुवेषी लोग खैर, लोग इतने समझदार हों या न हों पर अपने दल बनाकर और अपने ठगदल के कुछ जो लोग लोगों के इस भोलेपन का उपयोग आदमियों को भक्त बनाकर जनता को लटा करते हैं। करके लोगों को लूटते हैं वे ठगचोर हैं । ठगचोर एकबार साधुवेषी ठगों का एक दल गाँव हज़ारों तरह के हैं इनके भंडाफोड़ के लिये सबको गाँव घूमा करता था, दलके कुछ आदमी पहिले यथाशक्य प्रयत्न करना चाहिये । आजाते थे और बच्चों में ऐसी मिठाइयाँ बाँटा ४- उद्घाटकचोर- वह है जो यथाश य करते थे जिससे दस्तकी बीमारी होजाती थी। रक्षा में रखी हुई वस्तु को चुरा ले जाता है। बादमें जब गाँववाले चिन्तित होते तो वे कहते ताला तोड़कर, दरवाजा तोकड़र, दीवार में छेद कि अमुक योगीवर की सेवा करो, तुम्हारी बीमारी करके, छप्पर फोड़कर आदि अनेक तरह से दूर होजायगी। गांववाले टगगुरु की सेवा करते, चोरी करनेवाले चोर उद्घाटकचोर हैं, ये पहिले भेंट चढ़ाते तब मिशाइयों में यह दस्तावर चीज़ तीनों तरह के चोरों से अधिक अपराधी हैं मिलाना बन्दकर दिया जाता, लोग समझते योगीश्वर अधिक दंडनीय या अधिक शिक्षणीय हैं। के प्रताप से बीमारी चली गई । इस प्रकार वह ५-चलातचोर- वे हैं जो रक्षण के टगमंडली लोगों से स्वब पूजा कराती, भेंट लेती। साधनों की ही नहीं किन्तु रक्षणबल की अवहे ऐसे ठगों से बचने के लिये मुख्य उपाय लना करके भी धन छीन लेते हैं | जैसे मेरे यही है कि लोग इस प्रकार के अवैज्ञानिक हाथ से कोई चीज़ छुड़ाकर लेजाय, मैं अपनी चमत्कारों से पिंड छुड़ालें । वे समझें कि महान से चीज़ को बचाने के लिये जितनी ताकत लगाऊँ महान् मनुष्य, फिर वह ईश्वर का अवतार ही उससे भी अधिक ताकत लगाकर चीज़ चुराकर क्यों न कहलाता हो पैग़म्बर तीर्थकर योगीश्वर आदि लेजाय यह सब बलात् चोरी है। यह उद्घाटकचोरी कोई भी क्यों न हो प्रकृतिके नियम के विरुद्ध से भी बड़ी चोरी है। कुछ नहीं कर सकता । इस प्रकार के चमत्कार ६- घातकचोर- वे हैं जो धन लूटने के जादू के खेल हैं जिस में हाथ की सफाई है लिये मालिक का या रक्षक का घात तक करते अंधकार या अज्ञान से दूसरों को मुलाना है और हैं। डाकू लोग इसी तरह के होते हैं । साम्राज्यकुछ नहीं है। योग के बल से मुद्दों को जिन्टाना, बादी शासक भी इसी कक्षा में आते हैं। किसी धन दूना चौगुना कर देना, खारे पानी का मीठा देश को जीतकर बिना किसी अपराध के उसका
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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