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________________ भगवनी के अंग उड़ाऊ खाऊ ऐयाश आदमी के समान खर्च करने का उपयोग करके अपने को उ ने लगनः दूसरी वन है : यह प्रमादरी है। ऋण का हो) मान लिया कि - इसी प्रकार दूसरे की चीज उपयोग के लिये अमरः किम से कोई चीज ली और देते समय मिलने पर उसको लापर्वाही से नष्ट कर डालना कम दी और शब्दों से या व्यवहार से आदि भी दी है। उसे अपनी चीज के कि हमने तुम्हारी चीज ली थी सो देदी अब हम समान या उससे भी अधिक सतर्कता से सम्भाल- उऋण है । मोर से ... या प्रगट कर रखना चाहिये। प्रमाण न होने से कोई मुंहपर भले ही कुछ न प्रश्न पर कोई अपनी चीज के उपयोग कहे पर चोर से डरने की ताह ढरने नो लगता में भी प्रमादी हो लापर्वाह हो तो क्या उसे भी ही है इसलिये उऋणचोर भी चोर है। प्रमादार कहेंगे । परन्तु इसमें उसका अपराध (ज) विम्मनिचोर-अपने या कोई अतिथि तो कुछ भी नहीं है ? अदि कोई वस्तु भल गया हो तो अपने को याद उत्तर- थोड़े बहुत में प्रमाद हर एक + आनेपर भी याद न दिलाना वापिस करने का आदमी में होता है, इस साधारण प्रमाद से अबसर हान पर भी वापिस न करना, सोचना अधिक प्रमाद जिन मनुष्य में हो उसका कतय कि भल जाय ता अछा, यह चीज मेरे काम है कि दसर की चीज उपयोग के लिये उधार आयगी, यह कि है। इसमें भी दूसरे का न मांगे। अगर मांगे नोक का खयाल धन हरन की वृत्ति है। रक्खे । अगर किसी ऐसे आदमी से वह चीज (...'नचोर- मेरी चीज नहीं है पर लेना हो जिसके साथ निर्दिक व्यवहार उचित किसी ने भ्रमसे समझ लिया कि मेरी है और पूछा न होगा तो उसे चाहिये कि उससे कदापि उधार क्या आप की है ! में इस तरह चुप रहा कि वह न ले, खरीदकर ही उस चीज का उपयोग करे। ममझे मेरी है और अगर पोल खुले तो कह सकू कि अन्यथा वह प्रमादचोरी ही समझी जायगी क्यों मने कब कहा था कि मेरी है ! यह मौन चोरी है। कि उसका परिणाम चोरी के समान ही होता है। मानाने चोर-मेरी चीज न हो पर मेरी साधारण चोर की तरह प्रमादार से भी लोग समझ कर कोई पूछे ओर मैं म उन निम्न अपनी वस्तु छिपाने लगते हैं, सतर्कता के कारण मौके मौकपर दोनों अर्थ निकल सकें । मानिस चिन्तित रहते हैं उतने अंश में सहयोग से भी भित्रकी चीज को.अपनी कहना और सोच लेना बचते हैं और कुछ घृणा आदि भाव भी पैदा हो कि पोल खुलने पर कहदंगा कि मैंने ने तुर जाते हैं। चीज की रक्षा करने के लिये अपनी कहदी थी (छ) उऋगचोर-माम न चुकाकर या परा अथवा तुम्हें मैंने अपना ही समझा इसलिये ऋण न चुका कर अपने को उऋण मनवालेना या अपनी कहदी । व्यवहार में ऐस ऐसे कहना उऋणचोरी है । जैसे हमने किसी से ऋण- प्रसंग वास्तव में आते हैं, उनी: में अपना लिया किन्तु देनेवाला भूल गया उसकी विस्मृति सन सिमानदार है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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