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________________ ३१५] सत्यामृत - इन भेदों से छनचोरी का विस्तृत रूप ठगों से बचने के लिये जरूरी यह है कि मनुष्य हमोर ध्यान में आजाता है। छनचोर और अन्य में हरामखोरी न हो। हरामखोरी नष्ट होने से चोरोंकी मनोवृत्ति में विशेष अन्तर नहीं होता, सिर्फ मनुष्य बहुत कुछ प्रलोभन विजयी बन जाता है शाब्दिक बचाव होता है जिसकी ओटमें छनचोर और प्रलोभन विजयी को ठग लोग मुश्किल से सहज ही में अपना चोरपन छिपा सकता है पर ठगपाते हैं । हां, ऐसे भी ठग हैं जो प्रलोभन इससे परिणाम में अन्तर नहीं होता । साधारण देकर नहीं लेकिन अपनी दयनीयता बताकर चोरी से व्यवहार में जो बुराई आती है वह छन्न लोगों को ठगते हैं, ये ऐसे दुष्ट ठग हैं कि इनकी चोरी से भी आनी है बल्कि कभी कभी साधारण चोरी नीचता बताने के लिये भाषा में शब्द नहीं है। एक प्रसिद्ध कथा है कि एक ठग पीड़ित से भी अधिक प्रतिक्रिया होती है । चोर को चोर । कह देने से मनका क्षोभ कुछ शान्त होनाता है __ और अपंग बनकर सड़क के किनारे पड़ रहा,इतनेमें पर छनचोर को चोर कहने का अवसर प्रायः वहाँ से एक घुड़सवार सज्जन निकला.। ठगने नहीं मिलता इसलिये भीतर ही भीतर क्षोभ काफी अपना दुःख रोकर उस सजन से सहायता चाही। सज्जन उतरा और उसकी सेवा-सुश्रुषा करने बढ़जाता है। लगा । इसबीच ठग मौका पाकर उठा और उस इस प्रकार की चेरिया प्रायः सभ्यता की के घोड़ेपर चढ़कर भागने लगा। सज्जनने उस ओट में हुआ करती हैं इससे सभ्यता कलंकित की धूनता देखकर उसे पुकारा और दूर से ही कहा होती है और उसके प्राण उड़जाते हैं इसलिये भाई तुम मुझे ठगकर जाते तो हो पर यह बात छन चोरी पर उपेक्षा कदापि न करना चाहिये । किसीसे कहना नहीं, क्योंकि इस घटना को २-भनका नज़रचौर वह है जो नजर सुनकर लोग पीड़ित निराश्रित अपंगों पर भी बचाकर अरक्षित या अरक्षित-सी पड़ी हुई चीज अरावतसा पड़ा हुइ चाज दया करना छोड़ देंगे। चुरा ले जाता है । किमी के बगीचे में से आम इस प्रकार ठगपन का समाज के नैतिक ही तोड़ लिये, बाहर पड़ी हुई चीज ही उठाली, जीवन पर बड़ा बुरा असर पड़ता है । ऐसे ठग कभी किसी बहाने से घर में जाने का अवसर व्यक्ति के ही अपराधी नहीं है किन्तु समाज के मिला तो वहां से कोई चीज चुराली इस प्रकार भी अपराधी हैं-मनुष्यमात्र के अपराधी हैं। ऐसे के साधारण चोरों को नज़रचोर कहते हैं । ये अपराधियों से बचने के लिये प्रलोभन विजयी चोर चीज चुराने में जबर्दस्ती नहीं करते तला होना भी व्यर्थ है, सतर्कता का थोड़ा बहुत वगैरह नहीं तोडते । पर चोरी का कोई साधारण योनि भी जो दयनीयता की ओट में अवसर मिल जाता है तो चीज चुरालेते हैं। ठगा करते हैं उन से किसी सहृदय व्यक्ति का ३-ठगचोर वे है जो अपनी धूर्तता से बचना कठिन ही है। ऐसे ठगोंपर सामाजिक लोगों को टगकर उनको प्रलोभन देकर धन हरण कोप उतरना चाहिये और उन्हें शिक्षण भी । करलेते हैं। बच्चों को निभाई आदि का प्रलोभन मिलना चाहिये । देकर आभूषण वगैरह टगने वाले आदि टगचोर हैं। पर टग को अधिक मीका लोभी और असं. टगने के अगणित तरीके हैं। इन सब तरह के यमी लोगों को लूटने में ही मिलता है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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