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________________ ३११ ] जानकर भोजन के बदले में मनमाना दाम वसूल करना । सत्यामृत प्रश्न--- अर्थशास का नियम है कि जब माल कम होता है और आवश्यकता अधिक होती है तब चीज का मूल्य बजाता है, इस नीति के अनुसार मौके पर अधिक मूल्य लेना अनुचित नहीं है। उसका उत्तर - अर्थशास्त्र के नियम के अनुसार बाज़ार में जो साधारण उतारचढाव होता है सम्बन्ध विनिमयचोरी से नहीं है विनिमयचोरी वहाँ है, जहाँ हम व्यक्तिविशेष की कठिनाई से अनुचित लाभ उठाते हैं। ऐसे अवसर पर अगर हम उसे कुछ न करें तो अनुचित लाभ उठाकर पाना चहिये । (ख) किचेर कोई चीज़ बाटने के लिये किसी आदमी में दी, वह सब को बाँटने लगा परने में उसके कुछ कुटुम्बी या मित्रजन बैठे थे उन्हें उसने काफी अधिक हिस्सा दिया, सुमी ऐसा ही किया, बाकी सबका थोड़ा थोड़ा दिया यह विभागचोरी है । इस प्रकार के बाँटने में थोड़ी बहुत हो हो जाती है पर उस सहज न्यूनाधिकता की ओट में मोहवश मनुष्य जो पक्षपात करजाता है अपमान द्वेष ईर्ष्या खेद आदि पैदा कर सहयोग के टुकड़े टुकड़े कर देता है। गृह कलह आदि के मूल में प्रायः यह विभागचोरी हुआ करती है, इसके इरान कार्य विदा होते हैं। एक बार इसी तरह एक का विच्छेद होगा। दो भाई थे। दोनों के एक एक पुत्र एक कर पर में अन आप एक भाई एक अनाद उस कर दोनों लड़कों को बाँटने बैठगये 1 लगा । दोनों लड़के उसके दोनों तरफ हँसिया से अमरुद के दो टुकड़े किये गये तो दाहिने हाथ में जो टुकड़ा आया वह कुछ बड़ा था और बायें हाथ का छोय, साधारणतः उसे दाहिने हाथ का टुकड़ा दाहिनी तरफ बैठे लड़के को और बायें हाथ का टुकड़ा बायीं तरफ बैठे लड़के को दे देना चाहिये था पर मुश्किल यह और बाईं तरफ उसका लड़का था इसलिये उसने हुई कि दाहिनी तरफ उसके भाई का लड़का था हाथ बदलकर दाहिने हाथ का बड़ा टुकड़ा बायें तरफ बैठे हुए अपने लड़के को दिया और बायें हाथ का छोटा टुकड़ा दाहिने तरफ बैठे हुए भतीजे को दिया। दूसरा भाई दूर पर खड़ा था उसकी नजर में यह घटना आगई तब उसने कहा, अब हमारे तुम्हारे बीच में भेदभाव का अपने को अलग अलग होजाना चाहिये, इस पाप घुस गया है इसलिये बटवारा करके अत्र प्रकार वे अलग हो गये । से अलग अलग होगये अन्यथा अविभक्त कुटुम्बों बड़ा भाई समझदार था इसलिये दोनों शान्ति में होता यह है कि ऐसी ऐसी बातें कोई मुँह से नहीं कहता उनका बदला दूसरे रूप से निकालने लगता है । इस प्रकार पक्षपात का इतना दौरदारा होजाता है न एक तरह की दर सी मचजाती है कि बाद में सिरफुटीबल और न्यायालय और अन्तमें एक दूसरे के भयंकर शत्रु वनके झगड़ों में उसका रूप दुनिया देखती है । कर उस कुटुम्ब के चिथड़े चिथड़े होते हैं । इस सबके मूल विभागचे है | प्रश्न- में पूर्णरूप समविभाजन नहीं हो सकता है। जो अधिक सेवा देता है या जो कुका मुख्य है, गुरुजन है, पूज्य है,
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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