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________________ ३०९ ] अर्थात के तेरह भेद यहां संक्षेप में दिये गये हैं प्राणघात के तेरह भेदों के अनुसार इनका अच्छादुरापन समझ लेना चाहिये । पर atraहार में अर्थघात के पाप से बचने के लिये इतना विवेचन काफ़ी न होगा । अर्थघात के विचार का ख़ास मुद्दा यह है कि लोग चोरी से बचें । बहुत से आदमी चोरी से बचना चाहते हैं। पर कुछ चोरियों को चोरी नहीं समझते - साधारण व्यवहार ही समझते हैं। उन्हें चोरी के भेदप्रभेदों से अपनी चेरी मादम होजायगी और उस चोरी के दुष्परिणाम से भी परिचित होजायेंगे । सत्यामृत चोरी के भेद हमें दो तरह से करने होंगे एक तो चोरी के पदार्थ की दृष्टि से, दूसरे चोरी करनेके तरीके की दृष्टि से दोनों ही बातों में बहुत से लोगों को भ्रम होजाता है। कोई कोई लोग अमुक पदार्थ को चोरी को चोरी नहीं समझते कोई कोई अमुक तरीके को चोरी नहीं समझते । पर उनके न समझने से चोरी का परिणाम रुक नहीं जाता इसलिये दोनों दृधियों से चोरी के भेद समझना चाहिये और उनका त्याग करना चाहिये। वस्तुकी दृष्टि से चोरी या चोर के चार भेद है १- धनचोर, २- नामचोर, ३उपकारचोर, ४- उपयोग चोर । 1 इन चारों का अर्थ सरल है। किसी भौतिक वस्तु को चुरानेवाला धनचोर है। किसी का यश छीन लेनेवाला, दूसरे की कृति को अपनी कृति बनानेवाला नाम-चोर है। अपने ऊपर किये गये उपकार को स्वीकार न करने वाला अर्थात् कृतन्न व्यक्ति उपकारचोर है । किसी वस्तु को चुराया तो न जाय किन्तु उसका चोरी से उपयोग कर दिया जाय यह उपयोग चोरी है। जो उपयोग सर्वसाधारण के लिये खुला हुआ हो या ख़ास तौर से अपने लिये खुला हुआ हो, जैसे किसी के बगीचे में सैर करना आदि, इस से कोई उपयोगचोर नहीं कहलाता । चोरी के ढंग की दृष्टि से चोर के छः भेद हैं। १- छनचोर, २ नज़रचोर, ३ ठगचोर, उद्घाटकचोर, ५ बलात्चार, ६ घातकचार । ऊपर कही गई चार प्रकार की वस्तुओं की चोरी छः छः तरह से होती है इसलिये चोरी के या चोरों के चौबीस भेद होजाते हैं । पहिले धन के विषय में ही ये भेद लगाये जाते हैं । ५ १-धन का छन्नवोर वह है जो वास्तव में चोर तो है पर उसके चोरपन पर व्यावहारिक सुविधा का ऐसा आवरण पड़ जाता है उसे चोर नहीं कहाजापाता । पर कह भले ही न सकें लेकिन उससे हमारा दिल चौकन्ना रहता है । जैसे झूठा बहाना बनाकर भीख माँगना । यहाँ चोरी का रूप है पर उसके ऊपर व्यवहार का ऐसा आवरण पड़ा है कि ऐसी चोरी करनेवाले चोरों में नहीं गिने जाते या सहज ही आरोप से बचजाते हैं । उन चोर कई तरह के होते हैं (क) विनिमयचोर (ख) विभागचोर (ग) अनुज्ञा चोर (घ) भिक्षाचोर (ङ) कणग्राहकचोर (च) प्रमादचोर (छ) उरणचोर (ज) विस्मृतिचोर (झ) मौनचोर (ञ) शब्द पचोर आदि । [क] विनिमयचोर मूल्य पूरा लेना पर उसका बदला पूरा न देना अर्थात् जितना जैसा माल ठहराया है उतना वैसा माल न देना । माप तौल गडबड करना, धोखे से मिलावटी चीज़ देना आदि विनिमय चोरी है। इसी प्रकार मज़दूरी या नौकरी पर जाना पर मालिक की नज़र बचाकर काम न करना, जिस वेग से काम करना चाहिये उस वेग से न करना आदि भी विनिमय चोरी है ।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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