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________________ भगवती के अंग [ ३०८ प्राकृतिक नहीं सामाजिकी इशिने सूक्ष्म अर्थधात ९ प्रमादज से किसी की चीन अर्थवात ही नहीं माना जाता है। जैसे मैंने अपने नष्ट कर देना आदि प्रमादज अर्थात है। सोने में काम लगाई उसकी बाहर १० प्रविषकन अन्धश्रद्धा आदि के कारण भी जा रही है और उपयोग दूसरे लोग भी अपनी या पराई सम्पत्ति इस प्रकार वर्च करना कर रहे है तो भी यह अर्थघात न कहलाया। जिससे मानव जीवन को कोई लाभ न हो और बाहर से मेरे बगीचे की गंध लेनेवाला चोर नही यह सम्पत्ति व्यर्थ जाय । जैसे अछे अछे खाद्य .. कहलाता है । इस प्रकार समाजने अगर कहीं पदार्थ धर्म के नामपर आगमें जला डालना आदि। चोरी टहराई ही हो तो वह सहजघात न कहलायगा, भक्षक कक्ष टायगा । 4हृदय के आकर्षण के लिये ५मायज--प्राणघात की तरह । अन्तर और वायुशुद्धि के लिये उपयोगी है। इतना ही है कि यहाँ बम आदि से प्राण-नाश मानने अंश में उपयोगी हो उतने है यहाँ धन-नाश है। अंश में करना चाहिये पर इन तीन बातों का ६ भ्रमज-भ्रम से सम्पत्ति का नाश हो- खयाल रखना चाहिये (१) खाद्य पदार्थ या अन्य जाना। कोशिश की जाय धनके अर्धन और रक्षण उपयोगी पदार्थ न जलाये जायें (२) जितना लिये, और हो जाय नाश तो यह भ्रज अचात जन्लाना वायशुद्धि के लिये उतना ही कहलायगा । अच्छा भोजन बनानक लिप कोशिश जलाया जाय (३) वायुशुद्धि र विक की किन्तु गल्ती से हो गया खराब। दुसरा कोई नुकसान न होजाय । अगर इन तीन आरम्भजायोचि, उद्योग तथा जीवन- बातों के अनसार होम ठीक न .:-मित्र निर्वाह के लिये होनेवाला दूसरों का अर्थनाश लोगों के के लिये ही उपयोगी आरम्भज अर्थधान है । अगर हम बाजार में कोई ते गथामाय शीघ्र दूसरे किसी टोगों का दूकान लगाते हैं तो अवश्य दूसरे कमरे के " किया जाय और होम -विषयक उनकी कुछ न कुछ ग्राहक खींचकर उनका अथंघात भावना बदली जाय । करते हैं पर इसके बिना चल भी नहीं सकता, ११ बाधक- स्वार्थवश अपना दीप ढंकने जीविका के क्षेत्र में इस प्रकार का अर्थघात के लिये, दाण्ड या प्रायश्चित्त से बचने के दिये स्वाभाविक है और भी उदाहरण मिल सकते। पैसा लुटाने लगना, चीज़ों की तोड़ में करने हैं। जैसेयों आदि से दुध लेना । लगना आदि बाधक अर्थधात है। म्वरक्षक-माने न्यायोचित रक्षण के दिये दुसरे का अर्थवान पर पड़े तो स्वरक्षक १२ नमक- अहंकार - देववश दूसरों की धात है। जैसे-कोई अपने धनबल से हमें लूटना सम्पत्ति नष्ट करना, यश नष्ट करना आदि तक्षक चाहता है या कोई सानयादी रद हमें अर्थबात है। अपनी जी ने सनः चलना है तो उसकी : :नि १३ भक्षक-चोर, डकैती आदि भक्षक का अपहरण करलेना स्वरक्षक अवधात है। अर्थघात है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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